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नागौर जिले के छोटे से गांव भूण्डेल से अकेले ही चल पड़ा मंजिल की ओर। सफर में भले ही कोई हमसफर नहीं रहा लेकिन समय-समय पर पत्रकारिता जगत में बड़े-बुजुर्गों,जानकारों व शुभचिंतकों की दुआ व मार्गदर्शन मिलता रहा। उनके मार्गदर्शन में चलते हुए तंग,संकरी गलियों व उबड़-खाबड़ रास्तों में आने वाली हर बाधा को पार कर पहुंच गया गार्डन सिटी बेंगलूरु। पत्रकारिता में बीजेएमसी करने के बाद वहां से प्रकाशित एक हिन्दी दैनिक के साथ जुड़कर पत्रकारिता का क-क-ह-रा सीखा और वहां से पहुंच गए राजस्थान की सिरमौर राजस्थान पत्रिका में। वहां लगभग दो साल तक काम करने के बाद पत्रिका हुबली में साढ़े चार साल उप सम्पादक के रूप में जिम्मेदारी का निर्वहन करने के बाद अब नागौर में ....

फ़रवरी 07, 2010

युवाओं के लिए आदर्श बना एक किसान


वकालात के बजाय चुना जैविक कृषि का रास्ता
धर्मेन्द्र गौड़
हुबली,७ फरवरी।
हर मां-बाप की चाहत होती है कि उनका बेटा पढ़ लिखकर उनका नाम रोशन करे और ऊंचाईयों को छूए। माता-पिता अपने बेटे को डॉक्टर,इंजीनियर और वकील जैसे क्षेत्रों में कामयाब बनाने का सपना संजोते हैं और बेलगाम में रहने वाले एक माता-पिता के पास उनके बेटे के लिए बहुत बड़े सपने थे लेकिन उसके भाग्य में कुछ और ही बात थी। सभी मां-बाप अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देकर उनके बेटे का सपना पूरा करने के लिए उसे एक अच्छी नौकरी और उनके संबंधित क्षेत्र में नाम दिलाने में मदद करते हैं ताकि उनके लाडले को शोहरत मिले। हो सकता है कि सभी समृद्ध माता पिता हर कीमत पर अपने बच्चों को अच्छा नाम कमाने के लिए डॉक्टर, इंजीनियर और वकील के व्यावसायिक पाठ्यक्रम में प्रवेश के बारे में सोचते हैं।
वकालात को ना,खेती को हां: ऐसे ही एक मामले में बेलगाम जिले के हुक्केरी तालुक के यमाकनामराडी के तबाची परिवार की भी चाहत थी कि वे अपने बेटे अशोक को एक नामी वकील बनाएं। ऐसा सोचकर उन्होंने उसे बीए,एलएलबी तक पढ़ाया लेकिन अशोक वकालात नहीं करना चाहता था। उसने केवल ज्ञानार्जन के लिए कानून का अध्ययन किया और वह अब कृषि क्षेत्र में हाथ आजमाना चाहता था। अशोक को पता था कि कृषि क्षेत्र में उपलब्धि बनाई जा सकती है। उसने अपने खेत में जैविक खेती को अपनाया है और कई फसलें लहलहा रही है। अशोक बिना किसी रसायन का उपयोग कर 17 एकड़ भूमि में कृषि कार्य कर रहा है। अपनी 5 एकड़ जमीन में गन्ना की जैविक खेती ३ एकड़ में चावल व 2 एकड़ भूमि में सब्जियां उगा रहे हैं।
बना दिया किसानों का क्लब: उन्होंने इन सभी फसलों के लिए जैविक खादों का उपयोग किया है। उसने इसके लिए एक अलग इकाई बना दी है। प्रत्येक फसल के उत्पादन की लागत बहुत कम है। वह सिर्फ 60 पैसे की कीमत पर टमाटर का एक किलो उत्पादन करता है। इसी प्रकार बीन्स, बैंगन और अन्य फसलें भी ले रहे हैं। वह अब प्रति एकड़ में मात्र पांच हजार रुपए का निवेश कर ४०-५० टन गन्ने की व्यावसायिक फसल ले रहा है। इतना ही नहीं जैव कृषि द्वारा भूमि की उर्वरता भी बनाए रखी है। इतना ही नहीं उसने अपने अन्य प्रगतिशील साथियों यानी किसानों के साथ कार्बनिक खाद्य क्लब बनाया है। वे दाल,गुड़ पाउडर जैसे आइटम पैक करते हैं।
जैविक उत्पादों की विदेशों में मांग:जैविक खेती से तैयार उत्पाद निर्यात कर रहे हैं। उनके क्लब द्वारा निर्मित गुड़ की देश-विदेश में काफी मांग और वे यह बिचौलिया के माध्यम से जर्मनी के लिए निर्यात करते हैं। विदेशों में अपने क्लब में उत्पादित गुड़ की भारी मांग के अनुसार वे इसे प्रति किलो 70 रुपए प्रति किलो की कीमत पर निर्यात करते हंै। विदेशी देशों में इस गुड़ की लागत 250 प्रति किलोग्राम है। अशोक का कहना है कि यदि सरकार प्रगतिशील किसानों द्वारा निर्मित उत्पादों के निर्यात के लिए अवसर प्रदान करता है तो जैविक उत्पादों को सीधे अंतरराष्ट्रीय बाजार में निर्यात किया जा सकता है। इस तरह अदालत में जाकर एक काला कोट पहनने वाला अशोक कुमार अब एक प्रगतिशील किसान के रूप में युवाओं के लिए एक आदर्श बन गया है।

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