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Nagaur, Rajasthan, India
नागौर जिले के छोटे से गांव भूण्डेल से अकेले ही चल पड़ा मंजिल की ओर। सफर में भले ही कोई हमसफर नहीं रहा लेकिन समय-समय पर पत्रकारिता जगत में बड़े-बुजुर्गों,जानकारों व शुभचिंतकों की दुआ व मार्गदर्शन मिलता रहा। उनके मार्गदर्शन में चलते हुए तंग,संकरी गलियों व उबड़-खाबड़ रास्तों में आने वाली हर बाधा को पार कर पहुंच गया गार्डन सिटी बेंगलूरु। पत्रकारिता में बीजेएमसी करने के बाद वहां से प्रकाशित एक हिन्दी दैनिक के साथ जुड़कर पत्रकारिता का क-क-ह-रा सीखा और वहां से पहुंच गए राजस्थान की सिरमौर राजस्थान पत्रिका में। वहां लगभग दो साल तक काम करने के बाद पत्रिका हुबली में साढ़े चार साल उप सम्पादक के रूप में जिम्मेदारी का निर्वहन करने के बाद अब नागौर में ....

जनवरी 29, 2010

देश भर में लहराता है हुबली में तैयार तिरंगा


एकमात्र बेंगेरी खादी ग्रामोद्योग कर रहा उत्पादन
हुबली।
शायद यह बहुत कम लोग जानते हैं कि देश भर में गणतंत्र दिवस व स्वतंत्रता दिवस के मौके पर देश भर में फहराया जाने वाले ध्वज का कपड़ा बुनने वाले बुनकर गिने-चुने ही हैं। केवल खादी या हाथ से काता कपड़ा ही झंडे के लिए उपयुक्त माना जाता है। खादी के लिए कच्चा माल केवल कपास, रेशम और ऊन हैं। झंडा बनाने में दो तरह के खादी का उपयोग किया जाता है। एक वह खादी जिससे कपड़ा बनता है और दूसरा है खादी टाट, जो बेज रंग का होता है और खम्भे में पहनाया जाता है। खादी टाट एक असामान्य प्रकार की बुनाई है जिसमें तीन धागों के जाल जैसे बनते है। यह परम्परागत बुनाई से भिन्न है जहां दो धागों को बुना जाता है। इस प्रकार की बुनाई अत्यंत दुर्लभ है, इस कौशल को बनाए रखने वाले बुनकर भारत में एक दर्जन से भी कम हैं।
देश भर में मात्र जगह उत्पादन : हुबली स्थित कर्नाटक खादी ग्रामोद्योग संयुक्त संघ (केकेजीएसएस) द्वारा कपड़ा व झंडा तैयार किया जाता है। पहले देश में कई झंडा विनिर्माण इकाइयां थी लेकिन झंडा विनिर्माण की कठोर शर्तों व नियमें पर खरा नहीं उतर पाने की स्थिति में खादी विकास और ग्रामीण उद्योग आयोग (केवीआईसी) ने हुबली के केकेजीएसएस को ही इसके उत्पादन की अनुमति दी है। दिशा-निर्देशों के अनुसार प्रति वर्ग सेंटीमीटर में 150 सूत्र होने चाहिए। इसके साथ ही कपड़े में प्रति चार सूत्र और एक वर्ग फुट का शुद्ध भार 205 ग्राम ही होना चाहिए। यह बुनी खादी कर्नाटक राज्य के धारवाड़ के निकट गरग और बागलकोट जिलों से मिलती है। फिलवक्त हुबली के बेंगेरी स्थित कर्नाटक खादी ग्रामोद्योग संयुक्त संघ (केकेजीएसएस) को ही झंडा उत्पादन और आपूर्ति का लाइसेंस प्राप्त है। संघ के सचिव सोमनट्टी ने पत्रिका से बातचीत में कहा कि राष्ट्र ध्वज केवल बेंगेरी के खादी ग्रामोद्योग में ही तैयार किया जाता है। वर्ष 2005 में यहां ध्वज बनाने की अनुमति मिली। इसके अलावा देश में कहीं भी राष्ट्र ध्वज तैयार नहीं किए जाते है।

कुशल हाथों में बुनाई का काम: यहां 14 गुणा 21 फीट से लेकर पाकेट साइज के राष्ट्र ध्वज तैयार किए जाते हैं। राष्ट्र ध्वज के लिए जरूरी कपड़ा बागलकोट जिले के तुलसिगेरी तथा बादामी तालुक के जालिहाल इकाइयों में तैयार किया जाता है। प्रतिदिन एक जुलाहा 10 से 15 मीटर तक कपड़ा बुनता है। इन जुलाहों को उनके कार्य के आधार पर वेतन दिया जाता है। एक जुलाहा प्रति दिन 80 से 100 रुपए कमा लेता है। राष्ट्र ध्वज का कपड़ा बुननेवाले जुलाहों को प्रति मीटर को 8 से 10 रुपए के आधार पर काम सौंपा जाता है। जुलाहे अपनी क्षमता के आधार पर 10 से 15 मीटर प्रति दिन कपड़ा बुनते हैं। इसे बेंगेरी खादी ग्रामोद्योग में रंगने के बाद छपाई, सिलाई आदि की जाती है। राष्ट्र ध्वज 18 अलग-अलग परीक्षणों से गुजरता है। इसे बेहद सूक्ष्मता से बनाया जाता है। राष्ट्र ध्वज की नाट, रस्सी आदि को भी बारीकी से परखा जाता है। 25 से 30 मीटर टक (मोटा कपड़ा)कपड़े को तैयार करने में एक सप्ताह लगता है। जालिहाल तथा तुलिगेरी में एक सौ कर्मचारी कार्यरत हैं। बेंगेरी में ध्वज को रंगने, सिलाई, इस्त्री आदि कार्यों में चालीस लोग लगे हैं। खादी ग्रामोद्योग आयोग के नियमानुसार राष्ट्र ध्वज तथा वेतन दिया जाता है। राष्ट्र ध्वज में कोई छूट, कमीशन आदि कुछ नहीं होता। प्रति माह खादी ग्रामोद्योग में आठ से दस लाख तथा वार्षिक 80 से 90 लाख की लागत के ध्वज तैयार किए जाते हैं। हर वर्ष 60 से 70 लाख की बिक्री होती है।
हर साल बढ़ती है मांग: बेंगेरी से ही देश तथा विदेशों में स्थित भारत के सभी कार्यालयों के लिए राष्ट्र ध्वज भेजे जाते हैं। यहां नौ आकार के राष्ट्र ध्वजों का उत्पादन किया जाता है। 14 गुणा 21 फीट ध्वज केवल ग्वालियर के किले, कोल्हापुर के रायगढ़ तथा नवलगुंद आदि तीन जगहों में ही फहराया जाता है। 8 गुणा 12 ध्वज संसद भवन, विधान सभा भवन तथा लाल किले पर फहराया जाता है। 6 गुणा 9 फीट के ध्वज को सेना तथा मिनी विधानसभाओं व ऊंचे किलों पर, 4 गुणा 6 फीट के ध्वज को जिलाधिकारी तथा पुलिस आयुक्तालयों पर, 3 गुणा साढ़े चार तथा दो गुणा तीन फीट के ध्वज को स्कूलों, कालेजों, सार्वजनिक स्थलों, गलियों, ऑटो रिक्शा स्टैण्ड आदि पर फहराया जाता है। तीन गुणा साढ़े चार फीट के ध्वज को 20 फीट ऊंचे पोल पर तथा दो गुणा तीन फीट के ध्वज को 15 फीट ऊंचे पोल पर फहराया जाता है। इसके अलावा १२ गुणा १८ इंच का ध्वज राष्ट्रपति के वाहन तथा विमान पर ,६ गुणा ९ इंच आकार वाला ध्वज मंत्रियों की कार पर तथा ४ गुणा ६ इंच का ध्वज टेबल पर लगाया जाता है।

जनवरी 28, 2010

कर्नाटक बाल विकास अकादमी के वार्षिकोत्सव


फोटो कैप्शन: धारवाड़ में गुरुवार को कर्नाटक बाल विकास अकादमी के वार्षिकोत्सव के उपलक्ष्य में बेंगलूरु की चिल्ड्रन्स फिल्म इंडिया संस्था का 6 वां अंतरराष्ट्रीय फिल्मोत्सव के उद्घाटन अवसर पर गुरुवार से प्रदर्शित की जाने वाली 6 बाल फिल्मों का दीप प्रज्ज्वलित कर उद्घाटन करते हुए जिलाधिकारी दर्पण जैन।

आधुनिक कन्नड़ महिला साहित्य सतमानोत्सव कार्यक्रम का उद्घाटन



फोटो कैप्शन: धारवाड़ में गुरुवार को सृजन रंग मंदिर में आधुनिक कन्नड़ महिला साहित्य सतमानोत्सव कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुए इंफोसिस फाउण्डेशन प्रमुख डा.सुधामूर्ति व अन्य।

दपरे के नए प्रशासनिक भवन का उद्घाटन


हर्षा कॉम्प्लेक्स स्थित दपरे कार्यालय होंगे स्थानांतरित
हुबली,२८ जनवरी।
गदग रोड पर दक्षिण पश्चिम रेलवे के नव निर्मित प्रशासनिक भवन का उद्घाटन दपरे महाप्रबंधक कुलदीप चतुर्वेदी ने किया। वर्तमान में स्टेशन पर स्थित लक्ष्मी बालकृष्णा स्क्वैयर (हर्षा कॉम्प्लेक्स) में कार्यरत दपरे के कार्यालयों को शीघ्र ही इस नए भवन में स्थानांतरित किया जाएगा।


इस अवसर पर मुख्य प्रशासनिक अधिकारी एस. विजयकुमारन,हुबली मंडल प्रबंधक आदेश शर्मा,दपरे के मुख्य अभियंता डी.जी.दिवाटे,मुख्य यांत्रिक अभियंता आलोक जोहरी, प्रिंसीपल चीफ अभियंता निर्माण,एस.बालकृष्णा,मुख्य सिग्रल व टेलीकॉम अभियंता लक्ष्मी नारायण, मुख्य सुरक्षा आयुक्त एस.सी.सिंहा सहित अनेक अधिकारी उपस्थित थे।

इसके अलावा चतुर्वेदी ने गणतंत्र दिवस के मौके पर क्लब रोड,केश्वापुर स्थित स्पोर्ट्स पैवेलियन का उद्घाटन भी किया। इस अवसर पर दपरे महिला कल्याण संगठन की अध्यक्ष कल्पना चतुर्वेदी सहित अन्य अधिकारी उपस्थित थे।

हुबली में दपरे के नए प्रशासनिक भवन का उद्घाटन करते दपरे महाप्रबंधक कुलदीप चतुर्वेदी। साथ में उपस्थित हैं हुबली मंडल प्रबंधक आदेश शर्मा व अन्य।

जनवरी 23, 2010

रेलवे स्टेशन परिसर में पुलिस की अवैध वसूली




बेलगाम। बेलगाम रेलवे स्टेशन परिसर में यातायात पुलिस की वर्दी में तैनात एक पुलिसर्मी दिन दहाड़े स्टेशन पर आने वाले वाहन चालकों से अवैध वसूली कर रही है। वर्दी धारी पुलिस द्वारा की जा रही वसूली लोगों के लिए चर्चा का विषय तो है ही साथ ही यह भी स्पष्ट नहीं हो रहा है कि आखिर वसूली करने वाला पुलिसकर्मी शहर पुलिस विभाग से है या राजकीय रेलवे पुलिस से। लोगों का कहना है कि इस मामले में बेलगाम रेलवे पुलिस से कई बार शिकायत की गई है लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई है। रेलवे स्टेशन परिसर में आने-जाने वाले कई लोगों को पुलिस की वसूली का शिकार होना पड़ रहा है। हर रोज बेलगाम स्टेशन पर हजारों प्रवासी छात्र और अन्य लोगों का आना-जाना रहता है। बिना रसीद दिए या चालान काटे पुलिस अपनी जेब भर रही है। लोगों का मानना है कि इस काम को भले ही पुलिसकर्मी अंजाम देते हों लेकिन बेलगाम स्टेशन में बैठने वाले उप निरीक्षक एवं अन्य अधिकारी भी इसमें शामिल हैं।
वसूली को बनाया धंधा : सूत्रों के अनुसार यातायात पुलिस की सफेद वर्दी में तैनात कृष्णमूर्ति नामक पुलिसकर्मी हर रोज नए शिकार की तलाश में साइकिल स्टेंड की आड़ में खड़ा रहता है। मोटी मुर्गी देख उसको हलाल कर देेता है। एक अनुमान के मुताबिक वह हर रोज बेलगाम स्टेशन पर दो हजार रुपए तक की राशि एकत्र करता है। सूत्रों का कहना है कि जब कोई जुर्माने की रसीद मांगता है तो उसको टालमटोल कर रवाना कर देता है। लोगों ने रेलवे के आला अधिकारियों से पुलिस के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है।
झटक लिए तीन सौ रुपए : शुक्रवार शाम में तिलकवाड़ी इलाके में रहने वाले राजेश सुतार अपने मित्र को तिरुपति ट्रेन में सवार करने के लिए स्टेशन गए थे। इस मौके पर कृष्णमूर्ति नामक पुलिसकर्मी ने उनके साथ बदतमीजी की और बिना चालान काटे और रसीद दिए 300 रुपए ले लिए। राजेश जैसे कई लोग रोजाना इसका शिकार हो रहे हंै। सूत्रों का कहना है कि कृष्णमूर्ति पिछले करीब तीन साल से यहां कार्यरत है।
क्या कहते हैं अधिकारी: यातायात पुलिसकर्मी की वर्दी में जीआरपी का कोई भी कर्मी बेलगाम स्टेशन पर तैनात नहीं है और सफेद वर्दी में तैनात पुलिसकर्मी स्थानीय पुलिस का हो सकता है। जीआरपी की यातायात विंग पुलिस का ऐसा कोई पुलिसकर्मी नहीं है। अगर ऐसा है तो कार्रवाई की जाएगी।
-आसुंडी,राजकीय रेलवे पुलिस हुबली,पुलिस अधिकारी
रेलवे स्टेशन परिसर में जीआरपी या आरपीएफ के ही कर्मी तैनात रहते हैं। किसी भी स्थानीय पुलिसकर्मी या यातायात पुलिसकर्मी को रेलवे स्टेशन परिसर में तैनात नहीं है। अगर इस मामले में कोई पुलिसकर्मी वसूली करते हैं तो उन पर सख्त कार्रवाई की जाएगी।
-सोनिया नारंग,पुलिस अधीक्षक बेलगाम,

फोटो व समाचार-प्रकाश बिलगोजी

महीनों से अपडेट नहीं दपरे की आधिकारिक साइट

तबादलों के बावजूद नहीं हटे पुराने अधिकारियों के नाम
धर्मेन्द्र गौड़
हुबली। सूचना प्रौद्योगिकी का गढ़ कहे जाने वाले कर्नाटक में दक्षिण पश्चिम रेलवे जोन की बेवसाइट को देखकर यह कह पाना मुश्किल है कि अद्यतन तकनीक के जमाने में,जहां पल-पल की जानकारी क्षण भर में अपडेट हो जाती है,दपरे इस तकनीक का कितना उपयोग करता है।
अधिकारी नए,नाम पुराने: दपरे की अधिकृत साईट पर आज भी मुख्यालय के उन अधिकारियों के पद नाम दिए गए हैं जिनको या तो जोन में ही किसी अंयंत्र विभाग में भेजा गया है या फिर उनका किसी दूसरे जोन में तबादला हो गया है। दपरे की आधिकारिक साइट पर अनुराग को वरिष्ठ उप महाप्रबंधक (एसडीजीएम) बताया गया है जबकि उनका वाणिज्यिक विभाग में मुख्य वाणिज्यिक प्रबंधक (पब्लिक बिजनेस) पद पर स्थानांतरण कर दिया गया है। मुख्य यांत्रिकी अभियंता (सीएमई) संजीव हांडा का तबादला हुए छह माह हो चुके हैं और उनकी जगह आलोक जोहरी ने कार्य भार ग्रहण भी कर लिया है लेकिन साइट पर जोहरी के बजाय हांडा का नाम ही दिया हुआ है। वित्तीय सलाहकार व मुख्य लेखा अधिकारी राधा वारियार का तबादला हो चुका है और उनकी जगह रामचन्द्रन आ गए हैं लेकिन नाम अभी भी पूर्व अधिकारी का ही दर्ज है।
कई महीनों से नहीं हुई अपडेट: इसके अलावा साइट पर मुख्य इलेक्ट्रिक इंजीनियर के रूप में नवीन टंडन का नाम लिखा है जबकि उनके तबादले के बाद टेम्पे यहां कार्य भार ग्रहण कर चुके हैं। साइट पर दामोदरन को मुख्य सुरक्षा आयुक्त बताया गया है जबकि वर्तमान में कार्यरत मुख्य सुरक्षा आयुक्त एस.सी.सिंहा को कार्यभार ग्रहण किए हुए दस माह बीत चुके हैं। इसके अलावा मुख्य सिग्रल एवं टेलिकॉम इंजीनियर का चेन्नई स्थानांतरण होने के बावजूद साइट पर उनका ही नाम है जबकि उनकी एस.लक्ष्मीनारायण कार्य भार ले चुके हैं। इसी प्रकार रेलवे के मुख्य विभागों में से एक पर्सोनेल विभाग के बारे में जानकारी अद्यतन नहीं की गई है। एन.स्वामीनाथन की जगह मोहन मेनन आ चुके हैं लेकिन साइट पर नाम एन.स्वामीनाथन का चल रहा है। इसके अलावा ऐसे कई अधिकारी है जिनका तबादला हो गया है लेकिन दपरे की साइट की मानें तो अभी वे दपरे जोन में काम कर रहे हैं। दपरे की साइट के अद्यतन नहीं होने के संबंध में एक पाठक द्वारा भेजे गए एक मेल के जवाब में २६ नवम्बर २००९ को दपरे निदेशक (वेबसाइट) की ओर से वापस भेजे गए उत्तर में लिखा गया था कि जल्द ही इसे अपडेट किया जाएगा। बावजूद इसके २२ जनवरी २०१० तक यह साइट अपडेट नहीं थी।

उतार-चढ़ाव का साक्षी रहा किम्स फिर चर्चा में


पूर्व निदेशक हिरेमठ फिर से निदेशक नियुक्त

धर्मेन्द्र गौड़
हुबली। विभिन्न उतार-चढ़ावों के बीच हाल ही अपनी स्थापना के 50 वर्ष पूरा करने वाला कर्नाटक मेडिकल साइंसेज (किम्स) एक बार फिर चर्चा में है। क्षेत्र के सबसे प्रतिष्ठित सरकारी अस्पताल में शूट आउट मामले के आरोपी व पूर्व निदेशक एम.जी.हिरेमठ की फिर से किम्स में नियुक्ति का मामला चर्चा का विषय बना हुआ है। सूत्रों के अनुसार सरकार की ओर से जारी आदेश पर हिरेमठ ने बुधवार को कार्य भार ग्रहण कर लिया है। गौरतलब है कि शूट आउट मामले के आरोपी व पूर्व निदेशक को सीओडी जांच में दोषमुक्त करार दिया गया है।
क्षेत्र का प्रतिष्ठित संस्थान: उत्तर कर्नाटक में चिकित्सा शिक्षा उपलब्ध कराने के साथ-साथ क्षेत्र के लोगों की जरुरतों को पूरा करने के लिए एक महत्वाकांक्षा के रूप में तत्कालीन मुख्यमंत्री बी.डी जत्ती ने 1 जनवरी 1960 को मेडिकल कॉलेज के साथ अस्पताल का उद्घाटन किया। मात्र 50 बिस्तर से शुरू यह अस्पताल 50 साल के समाप्त होने के बाद 1,250 रोगियों को समायोजित करने के साथ शुरू है। विभिन्न संकायों में स्नातक स्तर की पढ़ाई के लिए छात्र यहां अध्ययनरत हैं। उत्तर कर्नाटक के अकेले व महत्वपूर्ण चिकित्सा संस्थान ने पिछले 50 साल में कई उतार-चढ़ाव देखे हैं।
नाम बड़े दर्शन खोटे: यहां लगभग सभी जटिल बीमारियों का इलाज उपलब्ध है और संस्थाान ने ऐसे चिकित्सक तैयार किए हैं जो अब विदेशों में चिकित्सा जगत में महत्वपूर्ण पदों पर रहकर उपलब्धि हासिल कर रहे हैं। महाविद्यालय में वरिष्ठ फैकल्टी व अच्छे अनुभवी चिकित्सक रोगियों का इलाज करने के लिए उपलब्ध हैं। यहां कैथ प्रयोगशाला, कोरोनरी एंजियो, एंजियो प्लास्टी, बैलून एंजियो प्लास्टी सहित लगभग सभी आधुनिक सुविधाएं हैं। इसके अलावा एक ट्रोमा केन्द्र बनाया गया है। गौरतलब है कि अस्पताल में अव्यवस्थाओं व भ्रष्टाचार को लेकर वरिष्ठ पत्रकार पाटिल पुट्टप्पा सहित अनेक संगठन समय-समय पर सरकार से प्रशासन बदलने की मांग करते रहे हैं।
शूट आउट मामले ने किया शर्मसार: संस्थान ने पिछले कई सालों चिकित्सा अधीक्षक शूट आउट प्रकरण सहित कई शर्मनाक घटनाओं का सामना करना पड़ा। शूट आउट मामले में तत्कालीन चिकित्सा निदेशक को दोषी ठहराने का प्रयास किया गया और उन्हें 35 दिनों के लिए गिरफ्तार किया गया। सीओडी जांच के बाद उनको कांड के आरोप से दोषमुक्त किया गया। कई ऐसी घटनाओं से संस्थान की छवि को काफी धक्का लगा। एक स्वायत्त संस्था होने के बावजूद इसे हमेशा एक सरकारी संस्था के रूप में देखा जा रहा था। इस अवधि में कई बार किम्स के चिकित्साकर्मियों के अपनी मांगों को लेकर किए गए विरोध प्रदर्शन के चलते परेशान मरीजों को निजी अस्पतालों का रुख करना पड़ा।
अव्यवस्थाओं का आलम: दवाओं व बिस्तर की कमी, खराब इलाज, सफाई की खराब व्यवस्था, डॉक्टरों और धन की कमी किम्स में जारी रही। अब भी यह100 करोड़ रुपए की परियोजना की मंजूरी के लिए सरकार की ओर देख रहा है। गौरतलब है कि चार साल पहले संस्थान की ओर से १०० करोड़ रूप की परियोजना सरकार के समक्ष प्रस्तुत की गई। जिस पर सरकार भी सैद्धांतिक रूप से सहमत थी लेकिन इसी बीच किम्स में आए कुछ उतार-चढ़ाव के चलते इस परियोजना को अमली जामा नहीं पहनाया जा सका। गौरतलब है कि अस्पताल में स्थाई नियुक्ति सहित अन्य मांगों को लेकर चिकित्सा सहायक पिछले कई दिनों से विरोध-प्रदर्शन कर अनिश्चितकालीन धरने पर बैठे हैं।

गाड़ी की अंतिम बोगी में नहीं होंगे यात्री

बढ़ते रेल हादसों के मद्देनजर बोर्ड ने लिया निर्णय
धर्मेन्द्र गौड़
हुबली।
हाल ही उत्तर-प्रदेश में टुंडला के पास हुई रेल दुर्घटना से सबक लेते हुए रेलवे ने फिलहाल कोहरे वाले क्षेत्रों में जाने वाली टे्रनों के लिए खास निर्देश जारी करते हुए रेलवे बोर्ड ने कहा है कि इन क्षेत्रों की टे्रनों की आखिरी बोगी में यात्रियों को नहीं बैठाया जाएगा। इस बोगी पर ताला लगा रहेगा। शनिवार रात जारी हुए इस आदेश की पालना दक्षिण पश्चिम जोन में शुरू कर दी गई है।
ताला बंद होगा एसएलआर : दपरे के मुख्य जनसम्पर्क अधिकारी एस.पी.शास्त्री ने बताया कि रेलवे बोर्ड की ओर से फैक्स के जरिए ऐसे आदेश मिले हैं। और उन पर तुरंत प्रभाव से अमल किया जाना है। रेलवे बोर्ड ने शनिवार रात 11 बजे सभी जोन और मण्डलों को निर्देश दिया है कि ट्रेन की आखिरी बोगी में मुसाफिर नहीं होने चाहिए। गार्ड (एसएलआर) के अलावा इस बोगी में सामान्य यात्रियों के साथ महिलाओं व विकलांगों के लिए व्यवस्था होती है। बोर्ड ने कहा कि जो टे्रनें कोहरे वाले क्षेत्रों से गुजरती हैं, उनमें एसएलआर को ताला बंद किया जाए। फिलहाल यह व्यवस्था अस्थाई रहेगी।
लम्बी दूरी की गाडिय़ों पर होगा लागू : शास्त्री ने बताया कि रेलवे बोर्ड के निर्देश के बाद दपरे के बेंगलूरु, मैसूर व गोवा से राजस्थान,उत्तर प्रदेश सहित अन्य प्रदेशों की ओर जाने वाली, विशेष रूप से दिल्ली क्षेत्र की टे्रनों में यह व्यवस्था शुरू कर दी गई है। इसके अन्तर्गत बेंगलूरु से जोधपुर, गांधीधाम, हजरत निजामुद्दीन, यशवंतपुर से जोधपुर, मैसूर से अजमेर, जयपुर, वास्को से हजरत निजामुद्दीन,बेंगलूरु से गोरखपुर सहित कोहरा प्रभावित शहरों की ओर जाने वाली गाडिय़ों में अंतिम डिब्बा खाली रखा जाएगा व उस पर ताला रहेगा। हालांकि यह व्यवस्था घने कोहरे वाले क्षेत्रों में कोहरा रहने तक ही रहेगी।

रेलवे पुलिसकर्मी सपरिवार मुफ्त में कर सकेंगे सफर

धर्मेन्द्र गौड़
हुबली।
रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ) की तरह अब राजकीय रेलवे पुलिस (जीआरपी) के अधिकारी व कर्मचारी भी रेल में परिवार सहित नि:शुल्क यात्रा कर सकेंगे। रेलवे बोर्ड ने अधिकारियों व कर्मचारियों को सपरिवार मुफ्त रेल सफर के लिए पास देने का निर्णय लिया है। रेलवे की सुरक्षा की जिम्मेदारी राजकीय रेलवे पुलिस (जीआरपी) और रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ) दोनों निभाते हैं। आरपीएफ कर्मियों को परिवार मुफ्त रेलवे यात्रा करने के लिए पास मिलता है,लेकिन जीआरपी के जवानों को सिर्फ ड्यूटी पास ही दिया जाता है। जानकारी के अनुसार इस मुद्दे को लेकर जीआरपी ने रेल मंत्री ममता बेनर्जी से मिलकर उन्हें वस्तु स्थिति से अवगत कराते हुए आरपीएफ की तरह जीआरपी को भी सपरिवार मुफ्त रेल सफर के पास देने की मांग रखी थी जिसे मंजूर कर लिया गया।
आदेश मिलने पर होगा अमल: सूत्रों के अनुसार रेलवे बोर्ड द्वारा जीआरपी के अधिकारियों व कर्मचारियों को भी परिवार सहित रेल सफर के लिए पास व पीटीओ देने का निर्णय लिया गया है। इस आशय का आदेश पत्र सभी 16 जोनों को भेज दिया गया है। बोर्ड के आदेश पर जीआरपी को सुविधा प्रदान करने के लिए रेल प्रशासन द्वारा महानिरीक्षक राजकीय रेलवे पुलिस को पत्र लिखा गया है इसमें जीआरपी के अधिकारी व कर्मचारियों की संख्या सहित अन्य जानकारियां मांगी गई हैं। दक्षिण पश्चिम रेलवे जोन के मुख्य पर्सोनेल अधिकारी मोहन मेनन ने बताया कि जोन में रेलवे बोर्ड के आदेश की प्रति अभी तक नहीं मिली है प्रति मिलते ही आदेश को अमल में लाने प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी। राजकीय रेलवे पुलिस बेंगलूरु पुलिस महानिदेशक रमेश ने बताया कि इस संबंध में अभी तक रेलवे बोर्ड का पत्र नहीं मिला है और पत्र मिलने तक वे कुछ टिप्पणी नहीं कर सकते।

माल परिवहन बढ़ा, आय घटी


हुबली मंडल में यात्री भार व आमदनी बढ़ी
धर्मेन्द्र गौड़
हुबली।
दक्षिण पश्चिम रेलवे के हुबली मंडल ने चालू वर्ष में अप्रेल से दिसम्बर माह तक माल परिवहन ढुलाई के लक्ष्य से १.८ मिलियन टन अधिक माल का परिवहन किया। मंडल का इस अवधि में २४.२२ मिलियन टन माल परिवहन का लक्ष्य था और मंडल ने मंदी के बावजूद लक्ष्य को छूते हुए २४.६७ मिलियन टन माल की ढ़ुलाई की।
माल परिवहन बढ़ा, आय ५०० करोड़ कम : हुबली मंडल प्रबंधक आदेश शर्मा ने बताया कि मंदी के चलते मई २००९ में रेलवे में माल परिवहन में जबरदस्त कमी दर्ज की गई। माल परिवहन के लिए कंपनियों को आकर्षित करने के लिए रेलवे बोर्ड की ओर से माल परिवहन में रियायत देने का निर्णय लिया गया जिसके बाद कंपनियों ने माल ढ़ुलाई के लिए रेलवे का रुख किया। इसकी वजह से मंडल का माल ढुलाई का लक्ष्य तो पूरा हो गया लेकिन आय कम हो गई। शर्मा ने बताया कि इस अवधि ने मंडल ने २४.६७ मिलियन टन माल की ढुलाई कर २१४० करोड़ रुपए अर्जित किए। जो कि गत वर्ष से लगभग ५०० करोड़ कम है। पिछले वर्ष २५.६० मिलियन टन माल की ढ़ुलाई कर मंडल ने २६६० करोड़ रूपए अर्जित किए थे।
यात्री भार व आमदनी में इजाफा : माल परिवहन के उलट मंडल में न केवल यात्री भार में वृद्धि दर्ज की बल्कि इसकी आय भी गत वर्ष की अपेक्षा बढ़ी। उन्होंने बताया कि मंडल ने इस वर्ष अप्रेल से दिसम्बर की अवधि में १३०.५२ लाख यात्रियों से १३१.५० करोड़ रुपए कमाए। इस वर्ष बढ़े लगभग १८ लाख से अधिक यात्रियों से मंडल को १८ करोड़ रुपए अधिक की आमदनी हुई। गत वर्ष मंडल ने ११२.९७ लाख यात्रियों से ११३.९१ करोड़ रुपए अर्जित किए थे। शर्मा ने बताया कि मंडल में सिंगल रेल लाइन के बावजूद समय पर गाडिय़ों के परिचालन का ही नतीजा है कि मंडल में रेल यात्रियों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है।

चीनी मोबाइल बिक्री पर सरकारी आदेश बेअसर


धड़ल्ले से हो रहा कारोबार
धर्मेन्द्र गौड़
हुबली ।
भाग दौड़ भरी जिन्दगी में तेजी से बदलती दुनिया में मोबाइल लगभग हर युवा की दिनचर्या में शामिल हो गया है। लगभग पन्द्रह साल पहले शुरू और अब हर दिन फल फूल रहा मोबाइल कारोबार सौ प्रतिशत की रफ्तार से आगे बढ़ रहा है। सस्ती होती मोबाइल दरें,हैंड सैटों की घटती कीमतेंं व उनमें मौजूद एप्लीकेशन में बेतहाशा वृद्धि का ही नतीजा है कि आज स्कूली विद्यार्थियों से लेकर गृहणियों के पास मोबाइल के अद्यतन मॉडल देखे जा सकते हैं। देश में बढ़ते मोबाइल कारोबार को भांपते हुए चीनी कंपनियों ने अनाप-शनाप मॉडल भारतीय बाजार में उतार दिए जिससे न केवल देसी कंपनियों का बिजनेस प्रभावित हुआ बल्कि ऐसे मोबाइल देश की सुरक्षा व्यवस्था के लिए भी खतरा बन गए। देश भर में बिना आईएमईआई नम्बर वाले हैंडसेटों की बाढ़ सी आने के बाद इन मोबाइलों को राष्ट्र विरोधी ताकतों द्वारा उपयोग में लाए जाने की जानकारी के बाद सरकार ने गत वर्ष नवम्बर से ऐसे मोबाइल पर प्रतिबंध लगा दिया जिनमें वैध आईएमईआई नम्बर नहीं है। सरकार ने स्थानीय दूरसंचार कंपनियों को ऐसे मोबाइल धारकों की सेवाएं तत्काल प्रभाव से बंद करने के आदेश जारी किए। कंपनियों ने सरकारी आदेशों का अक्षरश: पालन करते हुए राष्ट्र हित में ऐसे मोबाइलों को खतरनाक मानते हुए उन पर सेवा देनी बंद कर दी। इतना ही नहीं सरकार ने काम में लिए जा रहे अवैध चीनी हैंडसेटों को वैध बनाने के लिए देश भर में बाकायदा सेंटर स्थापित भी किए। इन केन्द्रों पर निर्धारित तिथि के दिन रात्रि बारह बजे बाद सर्वर बंद कर दिया गया। और जो मोबाइल बिना आईएमईआई के थे उनकी रिंग बंद हो गई। बावजूद इसके न तो चीन में निर्मित मोबाइल की बिक्री पर असर हुआ है और न ही लोगों ने इसका उपयोग करना बंद किया है। शहर में अभी भी ऐसी कई दुकानें हैं जहां धड़ल्ले से चाइना निर्मित अवैध मोबाइल को वैध बनाने का काम कहीं चोरी छिपे तो कहीं खुले में हो रहा है। गत शुक्रवार को स्टेशन रोड स्थित हर्षा कॉम्प्लेक्स में पुलिस द्वारा छापे की कार्रवाई को इससे जोड़ा जा सकता है। पुलिस का कहना है कि उनको शिकायत मिली है कि कुछ दुकानों में आईएमईआई नम्बर डालने का काम अवैध रूप से किया जा रहा है। हालांकि यह बात अलग है कि पुलिस को छापे की कार्रवाई में ऐसा कोई सबूत नहीं मिला जिससे यह साबित हो सके कि अभी भी यह काम चोरी छिपे जारी है। लेकिन इतना तो तय है कि कुछ तो है जिसकी वजह से पुलिस को छापे की कार्रवाई करनी पड़ी।

होसपेट-वास्को रेल मार्ग दोहरीकरण से कम होगा यातायात दबाव

होसपेट-वास्को रेल मार्ग दोहरीकरण से कम होगा यातायात दबाव
धर्मेन्द्र गौड़
हुबली।
दक्षिण पश्चिम रेलवे का हुबली मंडल महाराष्ट्र,आन्ध्रप्रदेश,तमिलनाडु व गोवा आदि राज्यों में जाने वाले यात्रियों को सीधे रेल सेवा से जोड़ता है। मिरज से बेंगलूर तक एक लाइन होने के चलते इस मार्ग पर अधिक गाडिय़ों का संचालन संभव नहीं हो पाता है। इस मार्ग पर यात्रियों की सुविधा के लिए अधिक गाडिय़ां चलाने के लिए रेलवे ने दपरे जोन के हुबली मंडल में कुछ मार्गों का दोहरीकरण को हरी झण्डी दी है। हुबली मंडल प्रबंधक आदेश शर्मा ने बताया कि होसपेट-वास्को मार्ग के लगभग तीन सौ किलोमीटर में से ४७ किलोमीटर हिस्से का दोहरीकरण मंडल का निर्माण विभाग कर रहा है और शेष कार्य रेल विकास निगम की ओर से किया जाने वाला है। शर्मा ने बताया कि फिलहाल हुबली से हबसूर के बीच २० किलोमीटर व धारवाड़ से कम्बरगनवी तक २७ किलोमीटर तक का दोहरीकरण कार्य चल रहा है। शर्मा ने बताया कि सिंगल लाइन के बावजूद प्रतिदिन लगभग ९२ गाडिय़ों का संचालन समय पर किया जा रहा है, जो कि मंडल की उपलब्धि है। उन्होंने बताया कि होसपेट-वास्को रेल मार्ग के शेष भाग का कार्य रेल विकास निगम लिमिटेड करेगा और इस संबंध में बातचीत अंतिम दौर में है। राष्ट्रीय रेलवे उपभोक्ता सलाहकार समिति के सदस्य बाबूलाल जी.जैन ने बताया कि करीबन २००० करोड़ की लागत से इस प्रोजेक्ट को मंजूरी मिली है और इस मार्ग का दोहरीकरण हो जाने के बाद इस टे्रक पर और अधिक गाडिय़ां दौड़ाई जा सकेगी। फिलहाल सिंगल ट्रेक के कारण मालवाहक व सवारी गाडिय़ों के परिचालन में कठिनाई आ रही है। इस क्षेत्र सेे लोह अयस्क का ज्यादा परिवहन होने से लाइन पर यातायात का दबाव बना रहता है। इस मार्ग के पूरा होने के बाद गाडिय़ों की संख्या बढ़ाई जा सकेगी जिससे यात्रियों को सुविधा होगी।

अनूठा होगा हुबली का नया रेलवे स्टेशन भवन


फूड प्लाजा व शॉपिंग मॉल होंगे आकर्षण के केन्द्र
धर्मेन्द्र गौड़
हुबली।
रेलवे को माल भाड़े से मालामाल करने वाले देश भर के पहले पांच मंडलों में शुमार दक्षिण पश्चिम रेलवे जोन के हुबली मंडल का नया तीन मंजिला स्टेशन भवन आगामी वर्ष २०११ में बनकर तैयार हो जाएगा। इस नए व अद्यतन सुविधाओं से युक्त स्टेशन भवन को मंजूरी मिल गई है और निविदा के बाद नवम्बर ०९ में इसका काम भी शुरू हो चुका है। अति आधुनिक वास्तुकला से तैयार हो रहा यह स्टेशन भवन शहर के मुख्य पहचान चिह्नों में से एक होगा। मंडल प्रबंधक आदेश शर्मा ने पत्रिका से बातचीत में बताया कि स्टेशन भवन अपने आप में अनूठा होगा। १८.३ करोड़ की लागत से बनने वाले इस भवन में रेल यात्रियों के लिए वे सभी सुविधाएं मुहैया कराई जाएंगी जो अन्य बड़े शहरों में उपलब्ध हैं। इसमें शॉपिंग मॉल,फूड प्लाजा,प्रतीक्षालय,वीआईपी लॉंज व प्रतीक्षालय, महिला प्रतिक्षालय सहित अन्य सुविधाएं होगी।

पार्किंग पर खर्च होंगे २ करोड़ : शर्मा ने बताया कि रेलवे स्टेशन पर वाहन पार्किंग की समस्या को ध्यान में रखते हुए प्रस्तावित भवन में इसके लिए खास इंतजाम किए जाएंगे। स्टेशन पर प्रवेश व निकास द्वार को बड़ा किया जाएगा व निकास द्वार गणेशपेट की तरफ होगा। बस, कार व अन्य दुपहिया वाहन पार्किंग के लिए स्टेशन के सामने अधिक स्थान छोड़ा गया है और वाहनों के प्रवेश व निकासी का मार्ग अलग-अलग होगा ताकि वाहन पार्किंग में परेशानी नहीं हो।
छह हजार वर्ग फीट में होगा फूड प्लाजा : उन्होंने बताया कि इस भवन का काम पूरा होने के बाद लोगों को खाद्यान्न संबंधी शिकायत नहीं रहेगी। इस भवन में छह हजार वर्ग फीट क्षेत्रफल में फूड प्लाजा बनाया जाएगा। जिसे बाद में भारतीय रेल खान पान व पर्यटन निगम (आईआरसीटीसी) को संचालन के लिए सौंप दिया जाएगा। इसमें १०० व्यक्तियों के एक साथ बैठकर खाने की व्यवस्था होगी। यहां यात्री गुणवत्तायुक्त व स्वादिष्ट भोजन का आनंद ले सकेंगे।
विकलांगों के लिए होगी सुविधा : शर्मा ने बताया कि नया भवन तैयार होने के बाद शारीरिक रूप से नि:शक्त लोगों को एक प्लेटफार्म से दूसरे प्लेटफार्म पर जाने में दिक्कत नहीं होगी। उनके लिए नए भवन में रेम्प सुविधा होगी जिससे वे आसानी से जा सके। साथ ही सभी शौचालय भी विकलांगों के अनुकूल होंगे। इसके अलावा भवन में १० आरक्षण काउंटर, सामान्य प्रतीक्षालय,महिला प्रतीक्षालय,ऑटोमेटिक टिकट हेंडलिंग मशीन,वीआईपी प्रतीक्षालय भी होगा। इस भवन के पूरा होने के बाद स्टेशन पर दो अतिरिक्त रन थू्र प्लेटफार्म लाइन मिल जाएगी जिससे गाडिय़ों का परिचालन और भी सुगम हो जाएगा।
नए लुक में होगा भवन : उन्होंने बताया कि स्टेशन के मुख्य भवन पर लगभग १३.५ करोड़ रुपए लागत आएगी। इसमें स्टेशन भवन के विद्युतीकरण पर २.२ करोड़ व फर्नीचर निर्माण पर १० लाख रुपए खर्च किए जाएंगे। स्टेशन पर नई बैंच व कुर्सियां आरामदायक होंगी। साथ ही नए भवन में आरक्षण काउंटर की संख्या वर्तमान काउंटर से ज्यादा कर पुराने काउंटर भी चालू रखे जाएंगे ताकि यात्रियों को टिकट लेने में दिक्कत नहीं हो।

जनवरी 22, 2010

अब गाडिय़ों में स़ुझाव पेटिका

अब गाडिय़ों में स़ुझाव पेटिका

हुबली। रेल यात्रियों को यात्रा के दौरान होने वाली परेशानियों व आने वाली समस्याओं के लिए अब शिकायत दर्ज कराने या सुझाव देने के लिए रेलवे स्टेशन पर जाकर समय की बर्बादी नहीं करनी होगी। अब यात्री यात्रा के दौरान ही अपने सुझाव दे सकते हैं। जी हां,अब दक्षिण पश्चिम रेलवे के हुबली मंडल ने यात्रियों की सुविधा के लिए रेल सेवा को बेहतर बनाने की कवायद के तहत मंडल द्वारा संचालित सभी गाडिय़ों के वातानुकूलित डिब्बों व गार्ड कोच में सुझाव पेटी लगाई है।
सभी गाडिय़ों में होगी सुझाव पेटी: रेल यात्रियों को यात्रा के मार्ग में होने वाली परेशानियों की जानकारी वे तत्काल किसी अधिकारी तक नहीं पहुंचा पाते हैं ऐसे में उनकी यात्रा के अनुभवों व शिकायतों को रेलवे अधिकारियों तक भेजना संभव नहीं होता है। रेलवे बोर्ड ने सभी गाडिय़ों के गार्ड डिब्बे में शिकायत या सुझाव पेटिका लगाने का आदेश दिया है जिसके तहत सभी गाडिय़ों के गार्ड डिब्बों में सुझाव पेटी लगाई गई है। इसके अलावा मंडल ने अपने स्तर पर सभी वातानुकूलित डिब्बों में भी सुझाव पेटी लगाई है।
खाने की गुणवत्ता संबंधी शिकायतें ज्यादा: शर्मा ने बताया कि पिछले पंद्रह दिनों से कई शिकायतें मिली हैं जिनमें से ज्यादातर भोजन की गुणवत्ता से संबंधित है। चूंकि खान-पान का जिम्मा आईआरसीटीसी देखती है इसलिए सभी सुझावों व शिकायतों से खान-पान विभाग को अवगत कराया गया है। उन्होंने बताया कि प्रतिदिन हुबली पहुंचने पर गाडिय़ों से संबंधित विभाग के कर्मचारी डिब्बों से पत्र निकाल कर अधिकारियों तक पहुंचाते हैं। जिन पर तुरंत प्रभाव से कार्रवाई करते हुए यात्रियों के सुझावों पर अमल किया जाता है।
छमाही में दुर्घटनामुक्त रहा हुबली मंडल

समय पालन में भी आगे
धर्मेन्द्र गौड़
हुबली। देश भर में माल परिवहन से राजस्व संग्रहण में अव्वल ६४ मंडलों में पहले पांच मंडलों में शुमार दक्षिण पश्चिम रेलवे का हुबली मंडल चालू वर्ष की छमाही में दुर्घटना मुक्त रहा है। मंडल प्रबंधक आदेश शर्मा ने विशेष बातचीत में बताया कि मंडल के क्षेत्र से एक्सप्रेस व सवारियों गाडिय़ों सहित लगभग ९२ गाडिय़ां गुजरती है। चालू वर्ष के अप्रेल माह से सितम्बर तक मंडल द्वारा संचालित में एक भी गाड़ी हादसे का शिकार नहीं हुई।

रख-रखाव में सतर्कता जरुरी: उन्होंने कहा कि मंडल द्वारा संचालित गाडिय़ों के रख-रखाव की दिशा में बेहतर प्रयास व सावधानी के चलते यह संभव हो पाया है। मंडल की ओर से रख-रखाव की जाने वाली गाडिय़ों की पिट लाईन में छह घंटों में जांच के साथ मंडल के दायरे में आने वाले रेलवे टे्रक पर कड़ी नजर रखने से दुर्घटनाओं को टालने में मदद मिली है। रेलवे कर्मचारी यात्रियों को बेहतर सुविधा व सुरक्षा देने के लिए प्रतिबद्ध है और इसी का परिणाम है कि मंडल में हादसे शून्य के बराबर हैं।
समय पालन में भी आगे: शर्मा ने बताया कि हुबली मंडल दपरे के कुल राजस्व का अस्सी प्रतिशत राजस्व दे रहा है। जिसमें माल भाड़े के रूप में अर्जित आय,यात्री भाड़ा व अन्य स्रोतों से प्राप्त आय शामिल है। उन्होंने बताया कि मंडल द्वारा चलाई जाने वाली गाडिय़ों के संचालन मामले में भी मंडल आगे हैंं और मंडल की गाडिय़ों का लेटलतीफी का ग्राफ कम है। उन्होंने बताया कि प्रतिदिन हुबली से संचालित होने वाली गाडिय़ों का समय पालन का प्रतिशत ९२ है जबकि दपरे के अन्य मंडलों का समय पालन का ग्राफ लगभग ८० फीसदी है।

दक्षिण में हिंदी का परचम

हिन्दी दिवस पर विशेष.......
दक्षिण में हिंदी का परचम
-उत्तर-दक्षिण की दूरियां मिटाती हिन्दी
-सेतु का काम कर रही राजभाषा
दक्षिण भारत यानी देश का दक्षिणी भू-भाग ,जिसमें केरल , कर्नाटक ·, आंध्र एवं तमिलनाडु राज्य तथा संघ शासित प्रदेश पुदुच्चेरी शामिल हैं । केरल में मलयालम, कर्नाटक में कन्नड़, आंध्र में तेलुगु और तमिलनाडु तथा पुदुच्चेरी में तमिल अधि· प्रचलित भाषाएं हैं जो द्रविड़ परिवार की भाषाएं मानी जाती हैं। इन चारों भाषा-भाषियों की संख्या भारत की आबादी में लगभग 25 प्रतिशत है। दक्षिण की इन चारों भाषाओं की अपनी-अपनी विशिष्ट लिपियां हैं। दक्षिण का प्रवेश द्वार माने जाने वाले राज्य आंध्रप्रदेश की राजधानी हैदराबाद- सिकंदराबाद सहित अनेक स्थानों पर हिंदी व्यापक पैमाने पर बोली जाती है।
हिन्दी के लिए उर्वरक भूमि: यहां ki भाषाओं का सुसमृद्ध शब्द-भंडार, व्याकरण तथा समृद्ध साहित्यिक परंपरा भी है । अपने-अपने प्रदेश विशेष की भाषा के प्रति लगाव के बावजूद अन्य प्रदेशों की भाषाओं के प्रति यहां की जनता में नि:संदेह आत्मीयता की भावना है। भाषाई सद्भावन के लिए दक्षिण उर्वरक भूमि है। धार्मिक ·,व्यापारिक और राजनीतिक कारणों से उत्तर भारत के लोगों के दक्षिण में आने-जाने की परंपरा शुरू होनेके साथ ही दक्षिण में हिंदी का प्रवेश हुआ। यहां के धार्मिक ,व्यापारिक केंद्रों में हिंदीतर भाषियों ke साथ व्यवहार के माध्यम के रूप में, एक बोली के रूप में हिंदी का धीरे-धीरे प्रचलन हुआ। दक्षिणी भू-भाग पर मुसलमान शासको के आगमन और इस प्रदेश पर उनके शासन के दौर में एक भाषा विशेष के रूप में दक्खिनी ka प्रचलन चौदहवीं से अठारहवीं सदी के बीच हुआ, जिसे ‘दक्खिनी हिंदी’ की संज्ञा भी दी जाती है ।
हिन्दी अपनाने के अनेक अनेक आधार: दक्षिण में हिंदी के प्रचलन के कारणों अथवा आधारों का पता लगाने पर यह बात स्पष्ट है की धार्मिक , राजनीतिक , सामाजिक , सांस्कृतिक ·, व्यापारिक आदि अनेक आधार हमें मिलते हैं । यह मान्य तथ्य है की यहां पहुंचकर हिंदी भाषा को कई शैलियाँ, कई शब्द और रूप मिल गए हैं। आदान-प्रदान का एक बड़ा काम हुआ, यही आगे एकता के आधार बिंदु की खोज का मूल साबित हुआ है। भिन्न भाषा-भाषियों के बीच आदान-प्रदान का एक सशक्त एवं स्वीकृत भाषा के रूप में दक्षिण में हिंदी प्रचलित हुई है। एकता की भाषा के रूप में हिंदी के महत्व को समझकर कई विभूतियों ने इसे अपनी अभिव्यक्ति की वाणी के रूप में अपनाकर देश की जनता से अपील की थी। आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती ने हिंदी का प्रबल समर्थन किया था। उन्होंने हिंदी को आर्य भाषा’ की सज्ञा देकर अपना महत्वपूर्ण ग्रंथ ‘सत्यार्थ प्रकाश’ की रचना हिंदी में ही की थी। हिंदी के प्रचलन में आर्य समाज के योगदान की यह एक मिसाल है । स्वाधीनता आंदोलन के दिनों में भावात्मक एकता स्थापित करने में हिंदी को सशक्त माध्यम मानकर इसके प्रचार के लिए कई प्रयास किये गए।
गांधीजी ने बोया हिन्दी का बीज: गांधीजी की राय में भाषा वही श्रेष्ठ है, जिसको जनसमूह सहज में समझ ले। आगे चलकर गांधीजी की संकल्पना से दक्षिण भारत में हिंदी प्रचार का एक बड़ा अभियान शुरू हुआ। आजादी के बाद जब स्वतंत्र भारत के संविधान का निर्माण हो रहा था, तब भी गांधीजी के इन महत्वपूर्ण विचारों के अनुरूप ही भारत के संविधान में राष्ट्रीय कामकाज की भाषाओं के रूप में हिंदी को तथा देश के विभिन्न राज्यों में वहां की क्षेत्रीय भाषाओं को राजकाज की भाषाओं के रूप में मान्यता देने की चेष्टा की गई है । गांधीजी के प्रयासों से 16 जून, 1918 को मद्रास में हिंदी वर्गों के आयोजन के साथ ही दक्षिण भारत में हिंदी प्रचार के प्रयासों को हिंदी प्रचार आंदोलन’ के रूप में एक व्यवस्थित आधार मिला। वर्ष 1918 में हिंदी साहित्य सम्मेलन का मद्रास का क्षेत्रीय कार्यालय आगे दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के रूप में प्रसिद्ध हुआ और आज हजारों विद्यार्थी प्रति वर्ष यहां से न केवल हिन्दी सीख रहे हैं बल्कि हिन्दी अखबारों सहित अन्य जरुरतों को अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
हिंदी प्रचार सभा का योगदान
दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा भी 1964 में राष्ट्रीय महत्व की संस्था घोषित हुई। फिलहाल इस सभा के दक्षिण के चारों राज्यों में शाखाओं के अलावा उच्च शिक्षा शोध-संस्थान भी हैं। सभा द्वारा हिंदी प्रचार कार्यक्रम के अंतर्गत विभिन्न हिंदी परीक्षाओं का संचालन किया जाता है। उच्च शिक्षा एवं शोध संस्थान के माध्यम से उच्च शिक्षा एवं शोध की औपचारिक उपाधियां भी प्रदान की जा रही हैं। दक्षिण में हिंदी प्रचार के क्रम में ऐसी कई छोटी-बड़ी संस्थाएं स्थापित हुई हैं। केरल में 1934 में केरल हिंदी प्रचार सभा, आंध्र में 1935 में हिंदी प्रचार सभा, हैदराबाद और कर्नाटक में 1939 में कर्नाटक हिंदी प्रचार समिति,1943 में मैसूर हिंदी प्रचार परिषद तथा 1953 में कर्नाटक महिला हिंदी सेवा समिति की स्थापना हुई । ये संस्थाएं हिंदी प्रचार कार्य में अपने ढंग से सक्रिय हैं । इन संस्थाओं द्वारा संचालित कक्षाओं में हिंदी सीखकर इन्हीं संस्थाओं द्वारा संचालित परीक्षाएं देनेवाले छात्रों की संख्या आजकल लाखों में है ।
हिन्दी सिनेमा का योगदान: यहां हिंदी फिल्मों के प्रदर्शन की बड़ी मांग रहती है, इनके दर्शकों में अधिकांश हिंदीतर भाषी भी होते हैं । हिंदी गीतों की लोकप्रियता की बात तो अलग ही है। कई दक्षिण भारतीय भाषाई फिल्मों की रिमेक हिन्दी में बनी है वहीं हिन्दी सिनेमा के असर से दक्षिण के कलाकार व दर्शक भी अछूते नहीं रहे हैं। इतना ही नहीं बॉलीवुड में दक्षिण भारतीय कलाकारों की एक लम्बी फेहरिस्त है जिन्होंने उत्तर-दक्षिण के बीच सेतु का काम किया । अंत्याक्षरी, गायन आदि कई रूपों में हिंदी गीत दक्षिण के सांस्कृतिक जीवनके अभिन्न अंग बन गए हैं । हिंदीतर भाषियों का हिंदी भाषा का अर्जित ज्ञान इतना परिमार्जित हुआ है की यहां सैकड़ों की संख्या में हिंदी के लेखक उभरकर सामने आए हैं।
पत्र-पत्रिकाओं से जुड़ाव: लेखको की लेखनी से सृजित हजारों कृतिया हिंदी साहित्य की धरोहर बन गई हैं । दक्षिण से सैकड़ों की संख्या में हिंदी ki पत्र-पत्रिकाएं प्रकाशित हुई हैं। इनमें हिंदीतर भाषियों द्वारा हिंदी प्रचार हेतु निजी प्रयासों से संचालित पत्रिकाएं भी कई हैं। हैदराबाद, बेंगलूरु तथा चेन्नई शहरों से तीन बड़े हिंदी अखबार प्रकाशित हो रहे हैं। इसके अलावा उत्तर कर्नाटक ,जिस पर हैदराबाद व महाराष्ट्र की भाषाओं का प्रभाव होने से यहां हिन्दी बोली व समझी जाती है,में पिछले पांच साल से प्रकाशित कर्नाटक का एक मात्र राष्ट्रीय हिन्दी दैनिक राजस्थान पत्रिका उत्तर व दक्षिण के बीच सेतु का काम कर रहा है। कई छोटे अखबार भी इन नगरों के अलावा अन्य शहरों से भी प्रकाशित हो रहे हैं । केवल हुबली-धारवाड़ क्षेत्र में ऐसे अनेक लब्ध प्रतिष्ठित कवि व लेखक हुए है जिन्होंने दक्षिण में हिन्दी को एक नया आयाम दिया है। साथ ही हिन्दी साहित्य का क·न्नड़ में अनुवाद भी किया है। यह कहा जा सकता है की दक्षिण में हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार के साथ अध्ययन, अध्यापन, लेखन, प्रकाशन में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। हुबली निवासी स्वतंत्रता सेनानी व वरिष्ठ पत्रकार पाटिल पुट्टपा (पापु)भी हिन्दी भाषा के अच्छे जानकार है। दक्षिण में हिंदीतर भाषी विभिन्न भाषा-भाषियों के बीच भी एक आम संपर्क भाषा के रूप में हिंदी की भूमिका अविस्मरणीय है।
राजनेताओं को हिन्दी से गुरेज नहीं : कहते हैं आवश्यकता आविष्कार की जननी है। उसी तरह दक्षिण के राजनीतिक क्षेत्र में सक्रिय राजनेताओं में भी अब हिन्दी का स्वागत किया जा रहा है। इतना ही नहीं उन्हें अपनी सफलता के लिए अच्छी हिन्दी का ज्ञान होना अनिवार्य लग रहा है। सभी को इस बात पर अचंभा ही होना चाहिए की अन्नाद्रमुक सुप्रीमो सुश्री जयललिता ने कुछ वर्ष पहले उत्तरप्रदेश के बरेली शहर में किसानो को हिन्दी में संबोधित किया । तमिलनाडु से द्रमुक की राज्यसभा सदस्य एवं मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि की पुत्री कनीमोझी भी हिन्दी की अच्छी जानकार हैं। गौरतलब यह है की अन्नाद्रमुक व द्रमुक हमेशा हिन्दी विरोधी राजनीतिक दल रहे हैं। कर्नाटक भाजपा के प्रमुख नेता अनंत कुमार हिन्दी के अच्छे जानकार हो गए हैं कर्नातक में भाजपा के लालकृषण आडवाणी जैसे नेताओं के धाराप्रवाह भाषणों का स्थानीय भाषा में अनुवाद कर दुभाषिये की भूमिका भी बखूबी निभाते हैं। हिन्दी के प्रोफेसर रह चुके पूर्व सांसद आईजी सणदी कन्नड़ के अलावा संस्कृत के भी जानकार हैं। निश्चित रूप से राजनीति· क्षेत्र में हिन्दी के प्रति पूर्वाग्रह एकदम कम हुआ है। अब तो अनेक अन्य वरिष्ठ राजनीतिज्ञ यह महसूस करते हैं की यदि वे भी हिन्दी में निपुण होते तो निश्चित ज्यादा लोकप्रिय और सफल होते। हिन्दी के प्रति राजनैतिक हठधर्मिता में आई शिथिलता ने दक्षिण भारतीयों को हिन्दी पढऩे एवं सीखने के प्रति प्रोत्साहित एवं जागरुक बनाया।
राजकीय सेवाओं ने दिया नया आयाम: डाक ,रेलवे,एयरफोर्स,सेना व बैंक जैसे विभागों का भी हिन्दी को बढ़ाने में योगदान रहा है। भारत संघ की राजभाषा के रूप में इसका प्रचार-प्रसार एवं प्रयोग अन्य गैर-हिंदी प्रांतों की तुलना में दक्षिण में अधिक है । जनता की जरूरतों तथा सर्कार की नीतियों के आलोक में दक्षिण भारत में हिंदी भाषा का भविष्य निश्चय ही उज्ज्वल रहेगा। उत्तर भारत से हजारों की संख्या में छात्र-छात्राएं यहां बी.एड., एमबीबीएस, नर्सिंग,एमबीए व अन्य पढ़ाई के लिए दक्षिण का रुख कर रहे हैं। स्वाभाविक है की यहां उनकी जरुरतों को देखते हुए स्थानीय लोगों में हिन्दी के प्रति लगाव बढ़ा है।