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Nagaur, Rajasthan, India
नागौर जिले के छोटे से गांव भूण्डेल से अकेले ही चल पड़ा मंजिल की ओर। सफर में भले ही कोई हमसफर नहीं रहा लेकिन समय-समय पर पत्रकारिता जगत में बड़े-बुजुर्गों,जानकारों व शुभचिंतकों की दुआ व मार्गदर्शन मिलता रहा। उनके मार्गदर्शन में चलते हुए तंग,संकरी गलियों व उबड़-खाबड़ रास्तों में आने वाली हर बाधा को पार कर पहुंच गया गार्डन सिटी बेंगलूरु। पत्रकारिता में बीजेएमसी करने के बाद वहां से प्रकाशित एक हिन्दी दैनिक के साथ जुड़कर पत्रकारिता का क-क-ह-रा सीखा और वहां से पहुंच गए राजस्थान की सिरमौर राजस्थान पत्रिका में। वहां लगभग दो साल तक काम करने के बाद पत्रिका हुबली में साढ़े चार साल उप सम्पादक के रूप में जिम्मेदारी का निर्वहन करने के बाद अब नागौर में ....

मई 22, 2012

....और अधूरी रह गई वो यात्रा

-हम्पी एक्सप्रेस मालगाड़ी से टकराई 
-२५ से ज्यादा यात्री मरे, कई घायल
-हादसों से सबक  लेगी सरकार?
हुबली

हुबली से बेंगलूरु जा रही हम्पी एक्सप्रेस में यात्रा कर रहे लोगों ने शायद सोचा भी नहीं होगा कि मंगलवार का सवेरा नहीं देख पाएंगे और सोमवार की रात उनके जीवन की अंतिम रात होगी। कर्नाटक के हुबली से सोमवार शाम को रवाना होकर मंगलवार सुबह ६.१० बजे बेंगलूरु पहुंचने वाली गाड़ी ने बेंगलूरु से १२७ किलोमीटर दूर आन्ध्रप्रदेश के अनंतपुर जिले में पेनुकोंडा स्टेशन पर खड़ी मालगाड़ी को पीछे से टकर मार दी। इससे गाड़ी में सवार कम से कम 2६ (दपरे के अनुसार २२)लोगों की मौत हो गई, जबकि ७६ (दपरे के अनुसार ३६) अन्य जख्मी हो गए। बताया जा रहा है कि रेल चालक के सिग्नल की अनदेखी के कारण यह हादसा हुआ। क्षतिग्रस्त बोगियों के अंदर फंसे यात्रियों को बाहर निकालने के लिए बचावकर्मियों को गैस कटर्स का इस्तेमाल करना पड़ा। इंजन से लगे दूसरे कोच में आग  लगने से गहरी नींद में सो रहे लोग कुछ समझ पाते उससे पहले ही उनमें से अधिकतर काल के गाल में समा गए। 
शवों की पहचान मुश्किल
रेलवे अधिकारियों ने बताया कि कुछ शव इतनी बुरी तरह जल चुके हैं कि उनकी पहचान भी मुश्किल है। मृतकों में अधिकतर कर्नाटक के ही लोग हैं। सोमवार शाम छह बजे हुबली से रवाना हुई यह गाड़ी मंगलवार सुबह छह बजकर १० मिनट पर बेंगलूरू पहुंचने वाली थी लेकिन गाड़ी आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले से निकलकर दोबारा कर्नाटक में प्रवेश कर रही थी इससे पहले ही यह दुर्घटना हो गई। रेलवे के जनसम्पर्क अधिकारी अनिल सक्सेना ने कहा कि दक्षिण पश्चिम रेलवे के हुबली स्टेशन से बेंगलूरु जा रही ट्रेन हम्पी एक्सप्रेस पेनुकोंडा स्टेशन पर तड़के 3.२5 बजे मालगाड़ी से टकरा गई। टक्कर के कारण एक एसएलआर तथा दो सामान्य डिब्बे पटरी से उतर गए।
इधर मातम उधर जश्न
पूरा देश 23 मौतों की खबर से शोक में हैं और सरकार की नाकामियों को कोस रहा है। लेकिन लगता है कि केंद्र सरकार को इन मासूमों की मौतों से कोई वास्ता नहीं है। वह अपने तीन साल पूरे होने पर जश्न की तैयारी में है। मंगलवार यानी २२ मई की शाम मनमोहन सिंह के आवास पर शाही डिनर का आयोजन किया गया है। इस डिनर में राजनीति से जुडा हर बड़ा शख्स होगा। सीधे शब्दों में कहें तो आज रात की पार्टी के शाही व्यंजनों  के बीच सुबह की चीखें दब जाएंगी। सरकार के एक साल पूरा होने के एक सप्ताह बाद (28 मई 2010) को बिहार के मिदनापुर जिले में ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस हादसे का शिकार हो गई थी और उस दर्दनाक हादसे में 170 लोगों की मौत हुई थी।
तीन साल में ३७ हादसे
वैसे भारतीय रेल में हादसों की यह खबर नई नहीं हैं। थोड़े वक्त के अंतराल पर देश के किसी ना किसी हिस्से से ऐसी खबर आ ही जाती है। बात अगर सिर्फ वर्ष 2012 की ही करें तो इस अभी तक सात हादसे हो चुके हैं। इनमें 30 से ज्यादा लोगों की मौत हुई और 150 से ज्यादा घायल हुए हैं। अकेले मार्च 2012 में ही चार रेल हादसे हुए हैं जिसमें पंद्रह से ज्यादा लोगों ने अपनी जान गंवाई है। आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2010 से अभी तक हुए रेल हादसों में ज्यादा घटनाएं रेल के पटरी से उतरने से हुई हैं। इन तीन वर्षो में कई रेल हादसे हुए करीब तीन सौ से ज्यादा लोगों ने अपनी जान गंवाई है। वहीं वर्ष 2010, 2011 और 2012 में अभी तक कुल 37 छोटी-बड़ी रेल दुर्घटनाएं हो चुकी हैं। इनमें सबसे ज्यादा 2010 में 17 रेल दुर्घटनाएं हुई, 2011 में 13 और 2012 में अभी तक मौजूदा हादसे को मिलाकर आठ रेल हादसे हो चुके हैं।
कब तक मरते रहेंगे लोग
जिस दिन सरकार ने दो साल (22 मई 2011) पूरे किए उस दिन भी बिहार के मधुबनी में एक रेल हादसा हुआ था। इस हादसे में 16 लोगों की मौत हुई थी। २२ मई २०१२ को सरकार ने तीसरा साल पूरा किया है और हंपी एक्सप्रेस हादसे में 23 लोगों की मौत दोपहर तक हो चुकी है। इन हादसों के बाद से सरकार पर कई सवालिया निशान उठने लगे हैं। सवाल यह कि क्या सरकार के अंदर ये कूवत नहीं है कि वह भविष्य में ऐसे हादसों की पुनरावृत्ति न होने देने की प्रतिबद्धता कर सके या रेलवे के आधुनिकीकरण के लिए जिम्मेदारी उठा सके? हास्यास्पद बात तो यह है कि इन हादसों के बाद भी सरकार देश की जनता को भरोसा दिला रही है कि इन तीन सालों में जो छूट गया उसे बाकी बचे दो सालों में पूरा कर लिया जाएगा।

सरकार के 3 साल और बड़े रेल हादसे
21 अक्टूबर 2009- गोवा एक्सप्रेस के मथुरा के पास मारवाड़ एक्सप्रेस से टकराने की वजह से 21 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी।
28 मई 2010- बिहार के मिदनापुर जिले में ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस के पटरी से उतरने से 170 लोगों की मौत हुई।
19 जुलाई 2010- पश्चिम बंगाल के सैंथिया में सैंथिया एक्सप्रेस के वनआंचल एक्सप्रेस से टकराने से 63 लोगों की मौत हो गई और करीब 165 लोग घायल हो गए।
20 सितंबर 2010- इंदौर ग्वालियर एक्सप्रेस के एक मालगाड़ी से टकराने से 33 लोगों की मौत हो गई।
7 जुलाई 2011- मथुरा-छपरा एक्सप्रेस के एक बस से टकरा जाने से बस में सवार 38 लोगों की मौत हो गई और तीस घायल हो गए।
10 जुलाई 2011- उत्तर प्रदेश के फतेहपुर में कालका मेल के पटरी से उतर जाने से 70 लोगों की मौत हो गई और तीस से ज्यादा लोग घायल हो गए।
13 सितंबर 2011- चैन्नई एक्सप्रेस के एक मालगाड़ी से टकरा जाने की वजह से दस लोगों की मौत हो गई।
22 नवंबर 2011- हावड़ा देहरादून एक्सप्रेस के पटरी से उतरने से सात लोगों की मौत हो गई।
11 जनवरी 2012- ब्रहमपुत्र मेल के एक मालगाड़ी से टकरा जाने से पांच लोगों की मौत हो गई।
20 मार्च 2012- उत्तर प्रदेश के महामाया नगर में रेलवे क्रासिंग पर एक ट्रेन के मिनी वैन के टकरा जाने से 15 लोगों की मौत हो गई।

मई 08, 2012

Rangpravesh

Sai  Manaswi  BT. Reddy  Performing  Bharatanatyam  in  Her  ''  Rangapravesham''  Programe  at  Srijana  Rangamandir  in  Dharawad