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Nagaur, Rajasthan, India
नागौर जिले के छोटे से गांव भूण्डेल से अकेले ही चल पड़ा मंजिल की ओर। सफर में भले ही कोई हमसफर नहीं रहा लेकिन समय-समय पर पत्रकारिता जगत में बड़े-बुजुर्गों,जानकारों व शुभचिंतकों की दुआ व मार्गदर्शन मिलता रहा। उनके मार्गदर्शन में चलते हुए तंग,संकरी गलियों व उबड़-खाबड़ रास्तों में आने वाली हर बाधा को पार कर पहुंच गया गार्डन सिटी बेंगलूरु। पत्रकारिता में बीजेएमसी करने के बाद वहां से प्रकाशित एक हिन्दी दैनिक के साथ जुड़कर पत्रकारिता का क-क-ह-रा सीखा और वहां से पहुंच गए राजस्थान की सिरमौर राजस्थान पत्रिका में। वहां लगभग दो साल तक काम करने के बाद पत्रिका हुबली में साढ़े चार साल उप सम्पादक के रूप में जिम्मेदारी का निर्वहन करने के बाद अब नागौर में ....

फ़रवरी 26, 2010

मायूस हुए प्रवासी,नहीं चली लम्बी दूरी की गाडिय़ां

जुड़वां शहर में द्वितीय स्तर के सामान्य विशेषज्ञता वाले अस्पताल
हुबली,फरवरी। बुधवार को घोषित रेल बजट राज्य के लिए मिला जुला रहा। प्रदेश में जहां कुछ गाडिय़ां नई शुरू होगी वहीं कुछ गाडिय़ों का विस्तार या चालन क्षेत्र बढ़ाया गया है। इसके अलावा राज्य में बहुप्रतीक्षित लाइनों के दोहरीकरण को हरी झण्डी मिली और राज्य सरकार की सहभागिता से कुछ नई लाइनों को रेलवे ने मंजूरी दी है। हालांकि राज्य से प्रवासियों की लम्बी दूरी की गाडिय़ां चलाने की मांग पूरी नहीं हुई। बजट में राजस्थान,गुजरात सहित अन्य प्रदशों के लिए सीधी अतिरिक्त रेल सेवा की घोषणा नहीं होने से प्रवासी मायूस हुए। बजट में राज्य के लिए की घोषणाएं एक नजर में-
इन स्टेशनों का होगा उन्नयन : चिकबल्लापुर,गौरीबिदनूर,गोकाक रोड,दोड्डबल्लापुर, यलहंका जंक्शन,देवनहल्ली व मिरज-सांगली(महाराष्ट्र),।
बहुउद्देश्यीय परिसर : बेल्लारी जंक्शन,दावणगेरे,गुलबर्गा,मिरज जंक्शन, शिमोगा टाउन,यशवंतपुर जंक्शन आदि स्टेशनों पर बहुउद्देश्यीय परिसर बनेंगे।
बाह्य रोगी विभाग व डायग्नोस्टिक सेंटर : बेंगलूरु सिटी,बंगारपेट,बीदर,बिरुर, घटप्रभा,गुलबर्गा,होसूर टाउन,होसपेट,हरिहर,लौंडा,मंडया,यशवंतपुर आदि।
द्वितीय स्तर के सामान्य विशेषज्ञता वाले अस्पताल : हुबली,धारवाड़, बिरुर,रायचूर,मिरज-महाराष्ट्र आदि।
पहियों के डिजायन,विकास व परीक्षण केन्द्र की स्थापना : बेंगलूरु रेल पहिया कारखाना-रेपका में डिजायन,विकास व परीक्षण केन्द्र की स्थापना की जाएगी।
नई सम्पर्क लाइन सर्वेक्षण : मैसूर-मडिकेरे-मेंगलूरु,गदग-हरिहर।
नई रेल लाइन सर्वेक्षण : बीजापुर-अथनी-शेडबाल,चिकबल्लापुर-गौरीबिदनूर,बेलगाम-बागलकोट-रायचूर,कृष्णगिरी-चामराजनगर,मैसूर-कुशालनगर-मडिकेरी,बेलगाम-सामंतवाड़ी,बोधन-बीदर आदि।
नई लाइनें: कोट्टूर-हरिहर,बीदर-खानापुर (गुलबर्गा)-हुमनाबाद।
आमान परिवर्तन: मिरज-लातूर का पंढरपुर -मिरज,शिमोगा-तालगुपा का शिमोगा-आनंदपुर,कोलार-चिकबल्लापुर-चिंतामणी-चिकबल्लापुर,शिमोगा-तालगुप्पा का आनंदपुर-तालगुप्पा,
दोहरीकरण : बिरुर-शिवानी,होसपेट-हुबली-लोंडा-वास्कोडिगामा।
राज्य सरकार की भागीदारी से नई लाइनें: हासन-बेंगलूर नई लाइन,कादूर-चिकमगलूर-सकलेशपुर नई लाइन,अरसीकेरे-बिरुर दोहरीकरण,कोलार-चिकबल्लापुर आमान परिवर्तन।
पीपीपी मॉडल पर नई लाइन : शिमोगा-हरिहर,व्हाइट फील्ड-कोलार,गदग-हावेरी,टुमकुर-दावणगेरे,बीजापुर-शाहबाद,धारवाड़ बेलगाम के अलावा रेलवे गुंतकल-बेल्लारी-होसपेट-वास्कोडिगामा खंड के बारे में भी विचार कर रहा है।
दुरंतो सेवा : यशवंतपुर-दिल्ली वातानुकूलित साप्ताहिक।
लम्बी दूरी की गाडिय़ां: मंगलौर-तिरूचिरापल्ली- ,शिमोगा-मैसूर इंटरसिटी, बेंंगलूरु-तिरुपति वाया बंगारपेट,बेंगलूरु-हुबली हम्पी एक्सप्रेस को स्व्तंत्र चलानाप्रस्तावित।
सवारी गाड़ी: बेंगलूरु-नेलमंगला पैसेंंजर,बागलकोट-गदग,होसपेट-हरिहर (आमान परिवर्तन के बाद)
फेरे बढे : हावड़ा-यशवंतपुर दुरंतो एक्सप्रेस २२४५/२२४६ चार दिन,पटना-बेंगलूरु संघ मित्रा २२९५/२२९६ प्रतिदिन,कोरबा-यशवंतपुर २२५१-२२५२ दो दिन,मंगलौर-कोचुवली एर्नाड एक्सप्रेस ६६०५/६६०६ प्रतिदिन।
इन गाडिय़ों का चालन क्षेत्र बढ़ा : यशवंतपुर-कोचीवेल्ली २७७७/२७७८ अब हुबली तक सप्ताह में एक बार, सांगली-मिरज १६२९ को कोल्हापुर तक प्रतिदिन, मिरज-पुणे १६१० का कोल्हापुर तक प्रतिदिन,मंगलौर-कुन्नूर६२३/६२४ का कोझीकोड़ तक,धारवाड़-गदग पैसेंजर ३५३/३५४ सोलापुर तक।

फ़रवरी 07, 2010

युवाओं के लिए आदर्श बना एक किसान


वकालात के बजाय चुना जैविक कृषि का रास्ता
धर्मेन्द्र गौड़
हुबली,७ फरवरी।
हर मां-बाप की चाहत होती है कि उनका बेटा पढ़ लिखकर उनका नाम रोशन करे और ऊंचाईयों को छूए। माता-पिता अपने बेटे को डॉक्टर,इंजीनियर और वकील जैसे क्षेत्रों में कामयाब बनाने का सपना संजोते हैं और बेलगाम में रहने वाले एक माता-पिता के पास उनके बेटे के लिए बहुत बड़े सपने थे लेकिन उसके भाग्य में कुछ और ही बात थी। सभी मां-बाप अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देकर उनके बेटे का सपना पूरा करने के लिए उसे एक अच्छी नौकरी और उनके संबंधित क्षेत्र में नाम दिलाने में मदद करते हैं ताकि उनके लाडले को शोहरत मिले। हो सकता है कि सभी समृद्ध माता पिता हर कीमत पर अपने बच्चों को अच्छा नाम कमाने के लिए डॉक्टर, इंजीनियर और वकील के व्यावसायिक पाठ्यक्रम में प्रवेश के बारे में सोचते हैं।
वकालात को ना,खेती को हां: ऐसे ही एक मामले में बेलगाम जिले के हुक्केरी तालुक के यमाकनामराडी के तबाची परिवार की भी चाहत थी कि वे अपने बेटे अशोक को एक नामी वकील बनाएं। ऐसा सोचकर उन्होंने उसे बीए,एलएलबी तक पढ़ाया लेकिन अशोक वकालात नहीं करना चाहता था। उसने केवल ज्ञानार्जन के लिए कानून का अध्ययन किया और वह अब कृषि क्षेत्र में हाथ आजमाना चाहता था। अशोक को पता था कि कृषि क्षेत्र में उपलब्धि बनाई जा सकती है। उसने अपने खेत में जैविक खेती को अपनाया है और कई फसलें लहलहा रही है। अशोक बिना किसी रसायन का उपयोग कर 17 एकड़ भूमि में कृषि कार्य कर रहा है। अपनी 5 एकड़ जमीन में गन्ना की जैविक खेती ३ एकड़ में चावल व 2 एकड़ भूमि में सब्जियां उगा रहे हैं।
बना दिया किसानों का क्लब: उन्होंने इन सभी फसलों के लिए जैविक खादों का उपयोग किया है। उसने इसके लिए एक अलग इकाई बना दी है। प्रत्येक फसल के उत्पादन की लागत बहुत कम है। वह सिर्फ 60 पैसे की कीमत पर टमाटर का एक किलो उत्पादन करता है। इसी प्रकार बीन्स, बैंगन और अन्य फसलें भी ले रहे हैं। वह अब प्रति एकड़ में मात्र पांच हजार रुपए का निवेश कर ४०-५० टन गन्ने की व्यावसायिक फसल ले रहा है। इतना ही नहीं जैव कृषि द्वारा भूमि की उर्वरता भी बनाए रखी है। इतना ही नहीं उसने अपने अन्य प्रगतिशील साथियों यानी किसानों के साथ कार्बनिक खाद्य क्लब बनाया है। वे दाल,गुड़ पाउडर जैसे आइटम पैक करते हैं।
जैविक उत्पादों की विदेशों में मांग:जैविक खेती से तैयार उत्पाद निर्यात कर रहे हैं। उनके क्लब द्वारा निर्मित गुड़ की देश-विदेश में काफी मांग और वे यह बिचौलिया के माध्यम से जर्मनी के लिए निर्यात करते हैं। विदेशों में अपने क्लब में उत्पादित गुड़ की भारी मांग के अनुसार वे इसे प्रति किलो 70 रुपए प्रति किलो की कीमत पर निर्यात करते हंै। विदेशी देशों में इस गुड़ की लागत 250 प्रति किलोग्राम है। अशोक का कहना है कि यदि सरकार प्रगतिशील किसानों द्वारा निर्मित उत्पादों के निर्यात के लिए अवसर प्रदान करता है तो जैविक उत्पादों को सीधे अंतरराष्ट्रीय बाजार में निर्यात किया जा सकता है। इस तरह अदालत में जाकर एक काला कोट पहनने वाला अशोक कुमार अब एक प्रगतिशील किसान के रूप में युवाओं के लिए एक आदर्श बन गया है।

युवाओं के लिए आदर्श बना एक किसान

वकालात के बजाय चुना जैविक कृषि का रास्ता
धर्मेन्द्र गौड़
हुबली,७ फरवरी।
हर मां-बाप की चाहत होती है कि उनका बेटा पढ़ लिखकर उनका नाम रोशन करे और ऊंचाईयों को छूए। माता-पिता अपने बेटे को डॉक्टर,इंजीनियर और वकील जैसे क्षेत्रों में कामयाब बनाने का सपना संजोते हैं और बेलगाम में रहने वाले एक माता-पिता के पास उनके बेटे के लिए बहुत बड़े सपने थे लेकिन उसके भाग्य में कुछ और ही बात थी। सभी मां-बाप अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देकर उनके बेटे का सपना पूरा करने के लिए उसे एक अच्छी नौकरी और उनके संबंधित क्षेत्र में नाम दिलाने में मदद करते हैं ताकि उनके लाडले को शोहरत मिले। हो सकता है कि सभी समृद्ध माता पिता हर कीमत पर अपने बच्चों को अच्छा नाम कमाने के लिए डॉक्टर, इंजीनियर और वकील के व्यावसायिक पाठ्यक्रम में प्रवेश के बारे में सोचते हैं।
वकालात को ना,खेती को हां: ऐसे ही एक मामले में बेलगाम जिले के हुक्केरी तालुक के यमाकनामराडी के तबाची परिवार की भी चाहत थी कि वे अपने बेटे अशोक को एक नामी वकील बनाएं। ऐसा सोचकर उन्होंने उसे बीए,एलएलबी तक पढ़ाया लेकिन अशोक वकालात नहीं करना चाहता था। उसने केवल ज्ञानार्जन के लिए कानून का अध्ययन किया और वह अब कृषि क्षेत्र में हाथ आजमाना चाहता था। अशोक को पता था कि कृषि क्षेत्र में उपलब्धि बनाई जा सकती है। उसने अपने खेत में जैविक खेती को अपनाया है और कई फसलें लहलहा रही है। अशोक बिना किसी रसायन का उपयोग कर 17 एकड़ भूमि में कृषि कार्य कर रहा है। अपनी 5 एकड़ जमीन में गन्ना की जैविक खेती ३ एकड़ में चावल व 2 एकड़ भूमि में सब्जियां उगा रहे हैं।
बना दिया किसानों का क्लब: उन्होंने इन सभी फसलों के लिए जैविक खादों का उपयोग किया है। उसने इसके लिए एक अलग इकाई बना दी है। प्रत्येक फसल के उत्पादन की लागत बहुत कम है। वह सिर्फ 60 पैसे की कीमत पर टमाटर का एक किलो उत्पादन करता है। इसी प्रकार बीन्स, बैंगन और अन्य फसलें भी ले रहे हैं। वह अब प्रति एकड़ में मात्र पांच हजार रुपए का निवेश कर ४०-५० टन गन्ने की व्यावसायिक फसल ले रहा है। इतना ही नहीं जैव कृषि द्वारा भूमि की उर्वरता भी बनाए रखी है। इतना ही नहीं उसने अपने अन्य प्रगतिशील साथियों यानी किसानों के साथ कार्बनिक खाद्य क्लब बनाया है। वे दाल,गुड़ पाउडर जैसे आइटम पैक करते हैं।
जैविक उत्पादों की विदेशों में मांग:जैविक खेती से तैयार उत्पाद निर्यात कर रहे हैं। उनके क्लब द्वारा निर्मित गुड़ की देश-विदेश में काफी मांग और वे यह बिचौलिया के माध्यम से जर्मनी के लिए निर्यात करते हैं। विदेशों में अपने क्लब में उत्पादित गुड़ की भारी मांग के अनुसार वे इसे प्रति किलो 70 रुपए प्रति किलो की कीमत पर निर्यात करते हंै। विदेशी देशों में इस गुड़ की लागत 250 प्रति किलोग्राम है। अशोक का कहना है कि यदि सरकार प्रगतिशील किसानों द्वारा निर्मित उत्पादों के निर्यात के लिए अवसर प्रदान करता है तो जैविक उत्पादों को सीधे अंतरराष्ट्रीय बाजार में निर्यात किया जा सकता है। इस तरह अदालत में जाकर एक काला कोट पहनने वाला अशोक कुमार अब एक प्रगतिशील किसान के रूप में युवाओं के लिए एक आदर्श बन गया है।

फ़रवरी 06, 2010

हुबली रेलवे स्टेशन से गुजरने वाली प्रमुख गाडिय़ां एक नजर में

गाड़ी संख्या व नाम आ.-प्र.(हुबली) दिन
धारवाड़ - हुबली - बेंगलूरु

2725 इंटरसिटी एक्सप्रेस २१:१०-२१.१५ रवि से सोम
2726 इंटरसिटी एक्सप्रेस ०५:४५-०६.२० रवि से सोम
धारवाड़ - हुबली - मैसूर

7301 मैसूर धारवाड़ एक्स. ०६:००-०६.१० रवि से सोम
7302 धारवाड़ मैसूर एक्स. २१:१०-२१.२५ रवि से सोम
हुबली - बेंगलूरु

2079 जन शताब्दी एक्सप्रेस १३.२० प्र. मंगल नहीं
2080 जन शताब्दी एक्सप्रेस १४.०० प्र. मंगल नहीं
6591 हम्पी एक्सप्रेस १७.३० प्र. रवि से सोम
6592 हम्पी एक्सप्रेस १०.३०आ. रवि से सोम
हुबली - दिल्ली

7305 निजामुद्दीन लिंक एक्स. १६.१५ प्र. रवि से सोम
2780 गोवा एक्सप्रेस ०६.१०आ.
हुबली - मिरज

1047 मिरज हुबली एक्सप्रेस ०६.१० आ. रवि से सोम
1048 हुबली मिरज एक्सप्रेस २३.०० प्र. रवि से सोम
हुबली - विजयवाड़ा

7225 अमरावती एक्सप्रेस ०९.३५आ. मंगल,शुक्र,रवि
7226 अमरावती एक्सप्रेस १२.१५ प्र. मंगल,गुरु,रवि
बेंगलूरु - हुबली - दिल्ली

2629 संपर्क क्रांति एक्स. २१.२०-२१.३० मंगल, गुरु
2630 संपर्क क्रांति एक्स. २२.०५-२२.२० गुरु,शनि
बेंगलूरु - हुबली - गुजरात

6505 गांधीधाम बेंगलूरु एक्स. १७.२५-१७.४० बुध
6506 बेंगलूरु गांधीधाम एक्स. ०६.४०-०६५५ रवि
बेंगलूरु - हुबली - राजस्थान

6507 जोधपुर बेंगलूरु एक्स. १७.२५-१७.४० शुक्र-रवि
6508 बेंगलूरु जोधपुर एक्स. ०६.४०-०६५५ मंगल-गुरु
6209 अजमेर मैसूर एक्स. १७.२५-१७.४० शनि-सोम
6210 मैसूर अजमेर एक्स. ०६.४०-०६५५ बुध-शुक्र
6531 गरीब नवाज एक्स. १६.४०-१६५५ मंगल
6532 गरीब नवाज एक्स. ०६.२५-०६.४० शनि
6533 जोधपुर यशवंतपुर एक्स. १६.४०-१६५५ गुरु
6534 यशवंतपुर जोधपुर एक्स. ०६.२५-०६.४० सोम
बेंगलूरु - हुबली - मुंबई मार्ग

1017 चालुक्य एक्सप्रेस १२.१५-१२.३० बुध नहीं
1018 चालुक्य एक्सप्रेस १५.००-१५.१५ शुक्र नहीं
बेंगलूरु - हुबली - कोल्हापुर

6589 रानी चेन्नम्मा एक्सप्रेस ०५.३०-०५.४५ रवि से सोम
6590 रानी चेन्नम्मा एक्सप्रेस २२.२५-२२.४० रवि से सोम
मैसूर - हुबली - दिल्ली

2781 स्वर्ण जयंती एक्सप्रेस ०४.३०-०४.४० शनि
2782 स्वर्ण जयंती एक्सप्रेस २०.१०-२०.२५ मंगल
मैसूर - हुबली - मुंबई

1035 सरावती एक्सप्रेस १२.१५-१२.३० बुध
1036 सरावती एक्सप्रेस १५.००-१५.१५ गुरु
चेन्नई - हुबली - वास्को

7309 यशवंतपुर वास्को एक्स. २३.४५-२३.५५ मंगल,रवि
7310 वास्को यशवंतपुर एक्स. ०२.०५-०२.१५ मंगल,रवि
7311 चेन्नई वास्को एक्स. ०६.४०-०६.५५ शनि
7312 वास्को चेन्नई एक्स. २०.१०-२०.२५ गुरु
7313 चेन्नई हुबली एक्स. ०६.४० आ. सोम
7314 हुबली चेन्नई एक्स. २०.२५ प्र. शनि
हावड़ा - हुबली - वास्को

2847 हावड़ा वास्को एक्स. ०८.४५-०९.०० सोम,बुध,गुरु,रवि
2848 वास्को हावड़ा एक्स. १२.२०-१२.३५ मंगल,गुरु,शुक्र,रवि
हैदराबाद - हुबली - वास्को

7226 हुबली काचेगुडा एक्स. १२.१५ सोम,बुध,शनि
7603 काचेगुडा हुबली एक्स. ०९.३५ मंगल,शुक्र,रवि
2848 वास्को काचेगुडा एक्स. १२.२०-१२.३५ मंगल,गुरु,शुक्र,रवि
7603 काचेगुडा वास्को एक्स. ०८.४५-०९.०० मंगल,गुरु,शनि,सोम
हैदराबाद - हुबली - कोल्हापुर

7416 हरिप्रिया एक्स. १९.१०-१९.२५ रवि से सोम
7429 रायलसीमा एक्स. ०८.३०-०८.४५ रवि से सोम
तिरूपति - हुबली - कोल्हापुर

7416 हरिप्रिया एक्स. १९.१०-१९.२५ रवि से सोम
7430 रायलसीमा एक्स. ०८.३०-०८.४५ रवि से सोम

फ़रवरी 03, 2010

आज भी पूज्य है मानव चमड़ी से बनी पगरखी

१२वीं सदी में एक भक्त ने बसवेश्वरा को की भेंट
हुबली, फरवरी। भक्त की ओर से अपने आराध्य के प्रति समर्पण कोई नया नहीं है। इतिहास में ऐसे अनेक दृष्टांत मिल जाएंगे जहां भक्त की ओर से भगवान के प्रति किया गया समर्पण एक इतिहास बन गया। ऐसी ही एक मिसाल सदियों पूर्व गुलबर्गा जिला केन्द्र से ४५ किलोमीटर दूर सेडम तालुक में बसे गांव निवासी मोची की है। जिसका समर्पण आज भी यादगार बना हुआ है। यहां आज भी १२वीं सदी में बनी पादुकाओं को पूजा जाता है। यह कोई साधारण चप्पल नहीं बल्कि समाज सुधारक,दार्शनिक व वीर शैव धर्म के संस्थापक बसवेश्वरा को भेंट की गई चप्पल है,जो मानव चमड़ी से बनी है। बिंजनाल गांव में १२ वीं सदी में एक मोची मादार चैन्नय्या ने स्वयं व पत्नी की चमड़ी से तैयार कर एक चप्पल जोड़ी बश्वेश्वरा को उपहार स्वरूप दी थी।
आठ सौ साल पुरानी है पगरखी: कहा जाता है कि मोची बश्वेश्वरा के कार्यों से इतना प्रभावित हुआ कि उसने खुद व पत्नी के शरीर जांघ से चमड़ी निकालकर चप्पल बना दी व बसवेश्वरा को भेंट कर दी। आठ सौ साल पुरानी इस चप्पल (पगरखी) को कीड़ों व खराब होने से बचाने के लिए हजारों श्रद्धालुओं की ओर से १८ वीं सदी में बनाए गए एक छोटे परंतु विशेष मंदिर में रखा गया है। समाज सुधारक बसवेश्वर ने उच्च जाति समुदाय से संबंधित लोगों को जोड़कर जाति भेद से दूर एक नए वर्ग का उदय कर समाज में व्याप्त कुरीतियों व सामाजिक बुराईयों व जातियता के भेदभाव को मिटाने के लिए व्यापक कार्यक्रम चलाया।
करोड़ों लोगों का आस्था बिंदु : एक जमाने में निजामों के अधीन रहे इस क्षेत्र में समाज, विशेष रूप से निम्न श्रेणी के अनेक लोग उनके अनुयायी बन गए और उनको भगवान का दूत मानने लगे। उनके अनुयायी लिंगायत कहलाए और आज कर्नाटक में लिंगायत समुदाय का बाहुल्य है। बसवेश्वरा ने समाज में कुरीतियों को दूर करने के लिए जनता को समझाने के लिए सरल भाषा में चौपाईयों की रचना की। उनके शिष्यों ने भी चौपाईयां लिखी है।
अठारहवीं सदी में बना मंदिर: राज्य की उत्तर-पूर्वी सीमा पर महाराष्ट्र व कर्नाटक की सीमा पर बसा कलबुर्गी,यानी कन्नड़ भाषा में पत्थरों का शहर (गुलबर्गा) में बसवेश्वर के सम्मान में मंदिर का निर्माण किया गया। मंदिर के केन्द्रीय भाग में शरण बसवेश्वर की समाधि है जिसे गर्भ गुडी कहा जाता है। इसके पास ही एक झील भी है जो यहां कर्नाटक,तमिलनाडु व आंध्र प्रदेश से आने वाले पर्यटकों व श्रद्धालुओं के आकर्षण का केन्द्र है। इस झील के उन्नयन्न का कार्य किया जा रहा है। वर्ष में एक बार मई माह में बसवेश्वर के सम्मान में बड़े पैमाने पर रथोत्सव जात्रा का आयोजन किया जाता है जिसमें कर्नाटक सहित पड़ोसी राज्यों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं।