नेशनल काउंसिल ऑफ एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग एनसीईआरटी ने आठवें अखिल भारतीय विद्यालय शिक्षा सर्वेक्षण में राजस्थानी को मातृभाषा माना है। यह सर्वेक्षण देश भर के मान्यता प्राप्त सेकंडरी और सीनियर सेकंडरी स्कूलों में इन दिनों करवाया जा रहा है। राजस्थान में भी यह सर्वेक्षण शुरू हो चुका है। एक समाचार पत्र ने अनिवार्य शिक्षा कानून बनते ही राजस्थानी का मुद्दा उठाया था। इसे लेकर कई अभियान भी चले और यह मुद्दा संसद में भी कई बार गूंजा। खास बात ये है कि राजस्थानी भाषा को बच्चों की मातृभाषा के रूप में दर्ज करने वाला यह सर्वेक्षण सिर्फ राजस्थान नहीं, बल्कि पूरे देश में करवाया जा रहा है।
इससे यह जानकारी हासिल होगी कि किस प्रदेश में कितने बच्चे राजस्थानी को मातृभाषा के रूप में बोल रहे हैं। एनसीईआरटी का यह सर्वे राजस्थान में एसआईईआरटी की ओर से करवाया जा रहा है। एसआईईआरटी की निदेशक लक्ष्मी ननमा ने एक समाचार पत्र को बताया कि इस बार मातृभाषओं के रूप में देश की कुल 50 भाषाओं को चुना गया है। इसमें राजस्थानी भाषा का कोड 39 रखा गया है।
राजस्थानी के अलावा इस बार जीलियांग, रूसी, तिब्बती, स्पेनिश, पुर्तगाली, निकोबारी, मिजो, कोन्यक, खासी, सेमा, लोठा, लिंबू, लेपचा, लद्दाखी, ककबरक, गारो, बोधी, भूतिया, भोती, एओ, अंगामी जैसी भाषाओं को भी शामिल इस सर्वेक्षण में शामिल किया गया है। सर्वेक्षण में राजस्थानी जैसी भाषओं के स्थानीय बोलियों को लेकर किसी तरह का भ्रम नहीं हो, इसके लिए अलग से परिभाषा दी गई है। इसमें साफ तौर पर बताया गया है कि मातृभाषा का आशय घर, गली, पड़ोस, दोस्तों और सगे-संबंधियों के बीच बोली जाने वाली भाषाओं से है।
सर्वे में क्या?
इस सर्वेक्षण के विद्यालय सूचना प्रपत्र 2 के सवाल 9 में राजस्थानी को लेकर यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि स्कूल में मातृभाषा के रूप में राजस्थानी के जरिए पढ़ाया जा रहा है या नहीं। प्रदेश के विभिन्न स्कूलों में भी इन दिनों यही सवाल पूछा जा रहा है। कई जगहों पर शिक्षकों ने कहा है कि अभी वे राजस्थानी में अधिकृत तौर पर नहीं पढ़ा रहे हैं, लेकिन जहां भी समस्या आती है, वहां वे राजस्थानी में ही छात्रों को जटिल शब्द, गणितीय सवाल या विषयवार प्रश्न समझा रहे हैं।
( एक समाचार पत्र मैं 12-11-2010 को प्रकाशित )
मेरे बारे में
- Dharmendra Gaur
- Nagaur, Rajasthan, India
- नागौर जिले के छोटे से गांव भूण्डेल से अकेले ही चल पड़ा मंजिल की ओर। सफर में भले ही कोई हमसफर नहीं रहा लेकिन समय-समय पर पत्रकारिता जगत में बड़े-बुजुर्गों,जानकारों व शुभचिंतकों की दुआ व मार्गदर्शन मिलता रहा। उनके मार्गदर्शन में चलते हुए तंग,संकरी गलियों व उबड़-खाबड़ रास्तों में आने वाली हर बाधा को पार कर पहुंच गया गार्डन सिटी बेंगलूरु। पत्रकारिता में बीजेएमसी करने के बाद वहां से प्रकाशित एक हिन्दी दैनिक के साथ जुड़कर पत्रकारिता का क-क-ह-रा सीखा और वहां से पहुंच गए राजस्थान की सिरमौर राजस्थान पत्रिका में। वहां लगभग दो साल तक काम करने के बाद पत्रिका हुबली में साढ़े चार साल उप सम्पादक के रूप में जिम्मेदारी का निर्वहन करने के बाद अब नागौर में ....
2 टिप्पणियां:
आपका प्रयास देखकर कहीं नहीं लगा कि यह छोटा-सा है।
बधाई।
चरैवेति।
Aapka pryash bahut saharaniya hai !
Sitaram Prajapati, Tihawali
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