-गड़बड़ाया रसोई का गणित
-दस माह में दाम रिकॉर्ड ऊंचाई पर
धारवाड़.प्रमुख खाद्य पदार्थों में से एक लहसुन के भाव इन दिनों आसमान छू रहे हैं। अब तक प्याज ही लोगों को रूला रहा था लेकिन अब लहसुन भी लोगों की जेब पर भारी पड़ रहा है। आम तौर पर लहसुन 35-40 रुपए किलो था लेकिन अचानक हुबली-धारवाड़ में लहसुन के दाम 140 से 16 0 पार हुए हैं जबकि मेंगलूरु में यह 220 प्रति किलो है। व्यापारियों की मानें तो लहसुन पहली बार इतना महंगा हुआ है। दस माह में लहसुन के दाम 35 रुपए से 150 रुपए पार हुए हैं। कृषि विभाग के अनुसार वर्ष 2009 में जनवरी से मार्च तक लहसुन प्रति किलो 15 से 20 रुपए था। मौजूदा वर्ष मार्च में बढ़ते दामों ने केवल 10 माह में नया रिकॉर्ड बनाया है।
मांग के अनुरूप नहीं आपूर्ति
कृषि विभाग सूत्रों ने बताया कि राज्य में लहसुन हुबली-धारवाड़, हासन, गुलबर्गा में तथा महाराष्ट्र, पूणे, बेलगाम, नासिक जिलों में थोक दर सौ रुपए प्रति किलो से ऊपर है। देश भर में लहसुन के दाम बढ़ गए हैं। मेंगलूर शहर खाद्य पदार्थों की श्रेणी में देश के सबसे महंगे शहर की श्रेणी में आ गया है। कृषि विभाग सूत्रों ने बताया कि लहसुन के दामों में अचानक इतनी तेजी बढोतरी होने का प्रमुख कारण आयात पर प्रतिबंध लगाना है। निर्यात अधिक, खाद्य संग्रह इकाइयों की मांग बढ़ती मांग आदि प्रमुख कारण हैं। देश में लगभग 8 लाख टन लहसुन का उत्पादन किया जाता है। पिछले दो वर्षों में उत्पादन में अल्प मात्रा में बढो़तरी हुई है।
आयात पर लगा प्रतिबंध
पिछले दो वर्ष से चीन से लहसुन के आयात पर रोक लगा है। बाढ़ के चलते चीन में लहसुन की कृषि को नुकसान हुआ है। जिससे उत्पादन घट गया है। इससे देश से निर्यात की मात्रा पिछले दो वर्षों में 6 गुना बढ़ गई है। पिछले वर्ष 30 करोड़ रुपए मूल्य का लहसुन बांग्लादेश समेत अन्य एशियाई देशों को निर्यात किया गया है। आम तौर पर बड़ा लहसुन विदेशों में निर्यात किया जाता है और छोटा लहसुन की स्थानीय बाजार में बेचा जाता है। बढ़ते निर्यात को देख किसान बड़े आकार के लहसुन का अधिक उत्पादन कर रहे हैं। खाद्य पदार्थों में लहसुन का अधिक इस्तेमाल किए जाने के चलते भी इसकी मांग अधिक हो रही है।
किसानों को नहीं मिला फायदा
सर्दी के मौसम में ली जाने वाली लहसुन की फसल अक्टूबर माह के अंत में बोई जाएगी और आगामी फरवरी-मार्च तक नई फसल बाजार में आएगी। लहसुन की रिकॉर्ड कीमत होने के बावजूद उसका उत्पादन करने वाले किसानों को अधिक लाभ नहीं मिला है।
-यल्लप्पा मेणसिनकाई, किसान
संग्रहण संभव नहीं
लहसुन की फसल काटने के पश्चात उसका संग्रह कर अच्छे दामों का इंतजार नहीं कर सकते। एक दो माह के बाद लहसुन का वजन घटता जाता है। इससे नुकसान ही होता है लाभ नहीं। परंतु कुछ दिनों में दाम अधिक होने के आसार नजर आते हैं ऐसे में कुछ लहसुन बेचते हैं और कुछ बचा कर रखते हैं। बाजार में दाम बढऩे पर इसे बेचेंगे।
-रवि उल्लागड्डी, किसान निगदी ग्राम
लहसुन के भाव एक नजर में
शहर लहसुन प्रति किलो
मेंगलूर -220 रुपए
बेंगलूरु -155 रुपए
धारवाड़ -16 0 रुपए
बेलगाम -120 रुपए
बेमौसमी बारिश की मार
लहसुन के दाम बढऩे का प्रमुख कारण बेमौसम बारिश है। इससे लहसुन के उत्पादन में कमी हुई है। यह समस्या पिछले कुछ सालों से है। इसके अलावा आयात तथा निर्यात का भी लहसुन के बाजार पर बहुत असर हुआ है। बाजार में बदलाव देख किसान असमंजस में हैं। कृषि विभाग की ओर से आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रहीं हैं। विभाग हमेशा किसानों का मार्गदर्शन करता आया है। लहसुन के दाम बढऩे से भी किसानों को बहुत ज्यादा फायदा नहीं मिल पाएगा।
-गणेश नायक, जिला कृषि विभाग अधिकारी धारवाड़,
बिना लहसुन के बनता है खाना
लहसुन के बढ़ते दामों के चलते गरीब परिवार ही नहीं बल्कि मध्यम वर्गीय परिवारों का बजट भी डगमगा रहा है। 35 से 40 रुपए प्रति किलो मिल रहा लहसुन आज 16 0 रुपए पहुंच गया है। इससे महंगी तरकारी के साथ लहसुन के दाम बढने से लोगों को बड़ा झटका लगा है। इसके दामों में बढोतरी होने के कारण बिना लहसुन के ही दाल व सब्जी बनती है। मजदूर हैं कहां से महंगी तरकारी लाएं। घर चलाना बहुत मुश्किल हो गया है।
मेरे बारे में
- Dharmendra Gaur
- Nagaur, Rajasthan, India
- नागौर जिले के छोटे से गांव भूण्डेल से अकेले ही चल पड़ा मंजिल की ओर। सफर में भले ही कोई हमसफर नहीं रहा लेकिन समय-समय पर पत्रकारिता जगत में बड़े-बुजुर्गों,जानकारों व शुभचिंतकों की दुआ व मार्गदर्शन मिलता रहा। उनके मार्गदर्शन में चलते हुए तंग,संकरी गलियों व उबड़-खाबड़ रास्तों में आने वाली हर बाधा को पार कर पहुंच गया गार्डन सिटी बेंगलूरु। पत्रकारिता में बीजेएमसी करने के बाद वहां से प्रकाशित एक हिन्दी दैनिक के साथ जुड़कर पत्रकारिता का क-क-ह-रा सीखा और वहां से पहुंच गए राजस्थान की सिरमौर राजस्थान पत्रिका में। वहां लगभग दो साल तक काम करने के बाद पत्रिका हुबली में साढ़े चार साल उप सम्पादक के रूप में जिम्मेदारी का निर्वहन करने के बाद अब नागौर में ....
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