-तीन बहनों ने ली दीक्षा
-पाश्र्व पद्मालय में उमड़ा जन सैलाब
हुबली-बेंगलूरु राजमार्ग पर सोमवार को गब्बूर स्थित पाश्र्व पद्मालय में बने पांडाल में आचार्य विजय अजीत शेखरसूरीश्वर ने जैसे ही तीन मुमुक्षुओं को दीक्षा प्रदान कर संघ में शामिल करने की घोषणा की, विशाल पांडाल श्रद्धालुओं के हर्ष-हर्ष, जय-जय व दीक्षार्थी अमर रहे के नारों से गुंजायमान हो गया। मुमुक्षु बहनों ने दीक्षा से पूर्व रंग-बिरंगे वस्त्रों का त्याग किया। बाद में वे पांडाल में ओघा लेकर और श्वेत वस्त्र पहनकर आचार्य के समक्ष उपस्थित हुईं। आचार्य ने मंत्रोच्चार के साथ उनको दीक्षा प्रदान की। उनके पांडाल में पहुंंचते ही सभागार में मौजूद श्रद्धालुओं ने करबद्ध होकर उनका अभिवादन किया। स्थानीय श्री जैन मरुधर संघ के तत्वावधान में आयोजित कार्यक्रम में आचार्य ने शुभ वेला में परिजनों की आज्ञा व दीक्षार्थियों की अनुमति लेकर दीक्षा देकर तीन मुमुक्षु बहनों को जैन साधु-संतों व बड़ी संख्या में उपस्थित श्रद्धालुओं की मौजूदगी में धार्मिक रस्मों रिवाज के बीच सांसारिक बंधन छोड़ वैराग्य की राह बताई। केशलोचन साध्वी वृंद ने करवाया।
सहमति मांगी, सहर्ष स्वीकारा
संघ की उपस्थिति में दीक्षा का विधान प्रारंभ करते हुए आचार्य ने सबसे पहले संयमी जीवन की विषमताओं, कठिनाइयों को समझाते हुए मुमुक्षुओं से सहमति मांगी, इसे उन्होंनेे सहर्ष स्वीकारा। इसके बाद उनके परिवार के सदस्यों ने सहमति जताई। संघ के तत्वावधान में ताराचंद सुरेश कुमार वैदमूथा, किरण कुमार कंातिलाल मुठलिया, रमेश कुमार मोहनलाल सौलंकी परिवार की ओर से गब्बूर स्थित श्री पाश्र्व पद्मालय तीर्थ में आचार्य विजय अजीत शेखरसूरीश्वर के मुखारविंद से दीक्षा हुई। सुबह मुहूर्त में आचार्य ने संयम अंगीकार करवाकर श्रावक-श्राविकाओं को संयमी जीवन की महत्ता के बारे में बताया। कार्यक्रम के प्रारंभ में दीक्षार्थी बहनों ने गुरु पूजन कर तीनों दीक्षार्थियों ने एक दूसरे को बधावणी दी व परमात्मा को स्वर्णाभूषणों की भेंट दी।
मिली नई पहचान
आचार्य ने सांसारिक नामों को बदलकर साध्वी जीवन में नई पहचान के लिए मुमुक्षु रीचा को साध्वी विधि ज्योतिश्री, मुमुक्षु सनम को नम्र ज्योतिश्री व मुमुक्षु हेमलता को साध्वी तारा ज्योतिश्री नाम दिया। सम्पूर्ण दीक्षा विधि कार्यक्रम का महत्वपूर्ण कही जानी वाली नामकरण विधि में तीनों दीक्षार्थियों के नामकरण का लाभ लेने वाले परिवारों द्वारा आचार्य वृंद व दीक्षार्थियों के परिवारजनों की अनुमोदना के बाद श्रद्धालुओं के बीच संयम जीवन के नामों की घोषणा करते ही पांडाल तालियों की गडग़ड़ाहट व णमोकार मंत्र की ध्वनि से वातावरण धर्ममय हो गया। पूर्व में दीक्षार्थियों के आग्रह पर आचार्य ने नंदी सूत्र का वाचन किया। आचार्य ने दीक्षार्थियों के परिजनों की अनुमति से जीव दया का प्रतीक रजोहरण (ओघा) नवदीक्षित दीक्षार्थियों को दिया।
इनका भी मिला सान्निध्य
आचार्य के शिष्य पन्न्यास विमलबोधि विजय, मुनि ज्ञानशेखर विजय ऊॅंकार शेखरविजय सहित अन्य मुनि, साध्वी ज्योतिवर्धनाश्री, हर्षज्योतिश्री, मौन ज्योतिश्री, विमल ज्योतिश्री, दक्षज्योतिश्री, कृपा ज्योतिश्री, अर्हंज्योतिश्री व रत्नज्योतिश्री आदि का भी सान्निध्य रहा। कार्यक्रम को सफल बनाने में समाज के महावीर यूथ फेडरेशन, श्रीअलबेला भक्ति कल्याण मंडल, बहु मंडल, रेवती मंडल, होसूर महिला मंडल,चंदनबाला मंडल सहित कई मंडलों व संघ-संस्थाओं के पदाधिकारियों व सदस्यों का सक्रिय सहयोग रहा। कार्यक्रम में मुम्बई, चेन्नई शहरों की अनेक सभा-संस्थाओं के पदाधिकारी भी उपस्थित थे।
भक्ति रस की धारा
दीक्षा महोत्सव में युवाओं में उत्साह देखते ही बन रहा था। वाद्य यंत्रों पर सुमधुर संगीत की धुन पर श्रद्धालु अपने स्थान पर झूमते नजर आए। दीक्षार्थी अमर रहो, दीक्षार्थी नो जय जयकार.., गुरुजी बड़े ज्ञानी सुना रहे वाणी..., सुना है शरणागत को अपने गले लगाते हो... सहित अनेक गीतों की प्रस्तुति से भक्ति रस की गंगा बहाई। इससे पूर्व रविवार शाम को सात बजे दीक्षार्थी एवं परिवारजनों का श्री संघ की ओर से संघ के ट्रस्टियों, पदाधिकारियों व सदस्यों ने सम्मान कर दीक्षार्थियों को विदाई दी। इस अवसर पर चेन्नई से सुरेश भाई विशेष रूप से आए हुए थे। संघ की ओर से विक्रम गुरुजी,अरविंद गुरुजी व अनिल भाई गुरुजी का सम्मान किया गया। संगीतकार अरविंद भाई सी.जैन एवं पार्टी संगीत की रमझट के साथ दीक्षा कार्यक्रम को यादगार बनाया। हुबली के विक्रम भाई ने दीक्षा विधि विधान कराया। हैदराबाद से आए मुकेश भाई ने कार्यक्रम का संचालन किया।
मेरे बारे में
- Dharmendra Gaur
- Nagaur, Rajasthan, India
- नागौर जिले के छोटे से गांव भूण्डेल से अकेले ही चल पड़ा मंजिल की ओर। सफर में भले ही कोई हमसफर नहीं रहा लेकिन समय-समय पर पत्रकारिता जगत में बड़े-बुजुर्गों,जानकारों व शुभचिंतकों की दुआ व मार्गदर्शन मिलता रहा। उनके मार्गदर्शन में चलते हुए तंग,संकरी गलियों व उबड़-खाबड़ रास्तों में आने वाली हर बाधा को पार कर पहुंच गया गार्डन सिटी बेंगलूरु। पत्रकारिता में बीजेएमसी करने के बाद वहां से प्रकाशित एक हिन्दी दैनिक के साथ जुड़कर पत्रकारिता का क-क-ह-रा सीखा और वहां से पहुंच गए राजस्थान की सिरमौर राजस्थान पत्रिका में। वहां लगभग दो साल तक काम करने के बाद पत्रिका हुबली में साढ़े चार साल उप सम्पादक के रूप में जिम्मेदारी का निर्वहन करने के बाद अब नागौर में ....
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