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Nagaur, Rajasthan, India
नागौर जिले के छोटे से गांव भूण्डेल से अकेले ही चल पड़ा मंजिल की ओर। सफर में भले ही कोई हमसफर नहीं रहा लेकिन समय-समय पर पत्रकारिता जगत में बड़े-बुजुर्गों,जानकारों व शुभचिंतकों की दुआ व मार्गदर्शन मिलता रहा। उनके मार्गदर्शन में चलते हुए तंग,संकरी गलियों व उबड़-खाबड़ रास्तों में आने वाली हर बाधा को पार कर पहुंच गया गार्डन सिटी बेंगलूरु। पत्रकारिता में बीजेएमसी करने के बाद वहां से प्रकाशित एक हिन्दी दैनिक के साथ जुड़कर पत्रकारिता का क-क-ह-रा सीखा और वहां से पहुंच गए राजस्थान की सिरमौर राजस्थान पत्रिका में। वहां लगभग दो साल तक काम करने के बाद पत्रिका हुबली में साढ़े चार साल उप सम्पादक के रूप में जिम्मेदारी का निर्वहन करने के बाद अब नागौर में ....

मार्च 21, 2010

प्यार का पौधा

पल्लवित हो रहे हमारे प्यार के
एक छोटे से पौधे को भी
कुछ पानी चाहिए था जीने के लिए
थी दरकार कुछ रोशनी की उसे भी
कुछ भी नहीं मिल पाया इस
नन्हें पौधे की जड़ों को
जिसकी इन्हें जरुरत थी
मैं नहीं दे पाया और कुछ वह न दे पाई
पता नहीं कौन था जिम्मेदार इसके लिए
मगर तुम तो उस बगिया की मालकिन थी
सब कुछ तुम्हारा ही था तो,
फिर क्यों सब उसने ही उजाड़ कर
उसको सुनसान बना दिया
मैंने सोचा कि एक पुष्प बनकर
महकूंगा उसकी वेणी में
मगर उसके लिए मैं कभी
कांटों से ज्यादा कुछ था ही नहीं
काश एक बार वो कहकर तो
देखती,क्या पता हम खुद ही
उस बगिया से रुखसत हो जाते
पर अफसोस ऐसा नहीं हुआ
मन को कचोटते अकेलेपन
को दूर करने के लिए
फिर से वह चल पड़ी मंजिल पाने
पता नहीं मंजिल मिली या नहीं
पर इतना तो तय है वैसा पौधा
फिर कभी उस बगिया में
नहीं पनप सकेगा स्वेच्छा से

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