इनका क्या कसूर
धर्मेन्द्र गौड़
विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र व उभरती महाशक्ति कहे जाने वाले देश का राष्ट्रपति,लोकसभा अध्यक्ष, सत्ताधारी दल की शीर्ष नेत्री और देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री महिला होने के बावजूद आज बेटी को बोझ समझा जाता है। इतना ही नहीं देश की लाडलियां राष्ट्र ही नहीं अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा कर वे साबित कर चुकी है कि कभी अबला कही जाने वाली मातृ शक्ति भी अब पुरुषों से दौड़ में कहीं आगे है। फिर भी देश का दुर्भाग्य कि यहां ५००000 कन्या भू्रण हत्याओं के चलते पिछले दो दशक में एक करोड़ लड़कियां कम हो गई हैं। ये वो अभागिन कन्याएं हैं जो या तो दहेज की भेंट चढ़ गई हैं या वारिस पाने की चाह में मार दी गई हैं। स्त्री-पुरुष लिंगानुपात में आजादी के बाद से काफी गिरावट आई है।
लिंगानुपात में कमी चिंताजनक: वर्ष 1951 में यह प्रति एक हजार पुरुषों पर 946 थी, जो 2001 में घटकर 933 हो गई। हालांकि 2001 में 1991 की तुलना में लिंगानुपात में वृद्धि हुई। वर्ष 1991 में लिंगानुपात प्रति एक हजार पुरुषों पर महिलाओं की संख्या मात्र 926 थी। आजादी के बाद इससे पहले सिर्फ एक मौके पर लिंगानुपात में वृद्धि देखी गई। वर्ष 1971 में लिंगानुपात 930 था, जो 1981 में बढ़कर 934 हो गया। तमाम सरकारी प्रयासों के बावजूद देश में कन्या भू्रण हत्या बदस्तूर जारी है। मानवता विरोधी यह घटना फिलहाल गुमनाम वाकया बनकर रह गई है। सिविल सर्जन गर्भ के बारे में सटीक जानकारी देने वाले अल्ट्रासाउंड जांच घरों पर नजर रखने का दावा तो करते हैं पर सच्चाई यही है कि लिंग परीक्षण खूब हो रहा है।
कलयुगी यमराजों का कारनामा: मरीज के लिए भगवान का दर्जा प्राप्त डाक्टर चंद पैसों के लिए चिकित्सीय परीक्षण कर अजन्मी कन्याओं को गर्भ में ही मारकर उनके खून से हाथ रंग रहे हैं। भारत वर्ष में लगभग दो दशक पूर्व गर्भस्थ शिशु के क्रोमोसोम के संबंध में जानकारी हासिल करने के लिए अल्ट्रासाउंड मशीन के द्वारा भू्रण-परीक्षण पद्धति की शुरुआत हुई और जिसे एमिनो सिंथेसिस कहा जाता था। इसकी सहायता से यदि इनमें कोई ऐसी विकृति हो तो जिससे शिशु की मानसिक व शारीरिक स्थिति बिगड़ सकती हो, उसका उपचार करना होता था। किन्तु अल्ट्रासाउंड मशीन का इस्तेमाल गर्भ में बेटा या बेटी की जाँच के लिए किया जाने लगा। अगर गर्भ में लड़का है तो उसे रहने दिया जाता है व लड़की होने पर गर्भ में ही खत्म कर दिया जाने लगा।
धरे रहे कानून कायदे: लिंग चयनात्मक पद्धति को अवैध बताते हुए सन 1994 में प्रसव पूर्व नैदानिक तकनीक (विनियमन और दुरूपयोग निवारण) अधिनियम बनाया गया जिसे सन1996 में प्रचलन में लाया गया। ताकि कन्या भू्रण हत्या पर लगाम कसी जा सके। इस अधिनियम के अंतर्गत, लिंग चयन करने में सहायता लेने वाले व्यक्ति को तीन वर्ष की सजा ,तथा 50,000 रूपये का जुर्माना घोषित किया गया तथा लिंग चयन में शामिल चिकित्सा व्यवसायियों का पंजीकरण रद्द किया जा सकने और प्रैक्टिस करने का अधिकार समाप्त किये जाने का कानून बना। फिर भी चोरी छिपे भू्रण परीक्षण करवाया जाता रहा। जिसे रोकने के लिये सुप्रीम कोर्ट ने 2001 में राष्ट्रीय निरीक्षण और निगरानी कमेटी बनाई गई। किन्तु सरकार की तमाम कोशिशें कन्याओं को गर्भ में मारने से नाकाम ही रही। यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार लड़कियों के मामले में भारत की स्थिति चिंताजनक है।
हर रोज मरती है हजारों कन्याएं: कन्या भू्रण हत्या के बढ़ते आकड़े भारत के कुछ राज्यों के लिए चिंताजनक हैं जहां लिंगानुपात में भारी गिरावट आई है। वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार प्रति 1000 लड़कों पर लड़कियों की संख्या 0 से 6 वर्ष तक की आयु का अनुपात दिल्ली में 845,पंजाब में 798,हरियाणा में 819, गुजरात में 883 था। उधर यूनिसेफ की रिपोर्ट बताया गया है कि भारत में प्रतिदिन 7,000 लड़कियों की गर्भ में ही हत्या कर दी जाती है। आज की ताजा स्थिति में संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि भारत में अवैध रूप से अनुमानित तौर पर प्रतिदिन 2,000 से ज्यादा अजन्मी कन्याओं का गर्भपात किया जाता है। यह स्थिति धीरे-धीरे इतनी विस्फोटक हो सकती है कि महिलाओं की संख्या में कमी उनके खिलाफ अपराधों को भी बढा सकती है । कन्या भू्रण हत्या से 2007 में देश के 80 प्रतिशत जिलो में लिंगानुपात में गिरावट आ गई थी।
अभी नहीं तो कभी नहीं: आज समाज में बेटे की चाह में अजन्मी कन्याओं को मारा जा रहा है लेकिन यह बात भी लड़कियों ने सिद्ध कर दी है कि वे भी कतई कम नहीं है। उन्होंने हर क्षेत्र में अपनी सफलता के झण्डे गाड़े हैं। चाहे वह अंतरिक्ष,सेना,शिक्षा,स्वास्थ्य,राजनीति हो या समाज सेवा हर क्षेत्र में इनकी प्रतिभा सिर चढ़कर बोलती है। लेकिन समाज अभी नहीं जागा तो वह दिन दूर नहीं जब देश में कुंआरों की संख्या बढ़ जाएगी जो कतई समाज हित में नहीं होगी। प्रति1000 लड़कों पर भारत में लिंगानुपात 927, पाकिस्तान में 958,नाइजीरिया में 965 आकां गया था।
शिक्षित व सभ्य भी पीछे नहीं: आज यह मानना गलत साबित हो गया है कि भू्रण हत्या का कारण अशिक्षा व गरीबी है, वरन शिक्षित व सम्पंन परिवार भी इस तरह के कृत्य में ज्यादा शामिल है। कन्या भू्रण हत्याओं का पहला और प्रमुख कारण तो यही है कि आज भी बेटे को बुढापे की लाठी ही समझा जा रहा है और कहा जाता है कि पुत्र ही मां-बाप का अंतिम संस्कार करता है व वंश को आगे बढ़ाता है। इधर शुरू हुए कुछ सामाजिक संस्थानिक प्रयास इस अवधारणा को बदलने में लगे हैं। गुजरात में डिकरी यानी लड़की बचाओ अभियान चलाया जा रहा है। हिमाचल प्रदेश ने भी कन्या भू्रण हत्या करवाने वाले की खबर देने वाले को इनाम देने की घोषणा की गई है। इसके अलावा कर्नाटक,राजस्थान सहित अनेक राज्य सरकारों ने कन्या भू्रण हत्या को रोकने के लिए लड़कियों के लिए अनेक योजनाएं शुरू की है। सरकार देश में बाहर से आयातित लिंग परीक्षण किट पर भी रोक लगा रही है।
मेरे बारे में
- Dharmendra Gaur
- Nagaur, Rajasthan, India
- नागौर जिले के छोटे से गांव भूण्डेल से अकेले ही चल पड़ा मंजिल की ओर। सफर में भले ही कोई हमसफर नहीं रहा लेकिन समय-समय पर पत्रकारिता जगत में बड़े-बुजुर्गों,जानकारों व शुभचिंतकों की दुआ व मार्गदर्शन मिलता रहा। उनके मार्गदर्शन में चलते हुए तंग,संकरी गलियों व उबड़-खाबड़ रास्तों में आने वाली हर बाधा को पार कर पहुंच गया गार्डन सिटी बेंगलूरु। पत्रकारिता में बीजेएमसी करने के बाद वहां से प्रकाशित एक हिन्दी दैनिक के साथ जुड़कर पत्रकारिता का क-क-ह-रा सीखा और वहां से पहुंच गए राजस्थान की सिरमौर राजस्थान पत्रिका में। वहां लगभग दो साल तक काम करने के बाद पत्रिका हुबली में साढ़े चार साल उप सम्पादक के रूप में जिम्मेदारी का निर्वहन करने के बाद अब नागौर में ....
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