बेहद वीरान सा एक शहर
चारों और पसरा सन्नाटा
सूनी सड़कों के किनारे
पेड़ों पर बैठे पक्षियों का
कलरव भी अब बंद है
शाम को डराता हल्का धुंधलका
क्यों ऐसा जिन्दगी में होता है
अंधेरी घनी डरावनी रातें हैं
रास्तों का काला घना तम
साथ में देख घना अकेलापन
डर सा जाता है मन
सिहर उठता है बदन
एक सूनापन,एक ऊबती
घुटन भरी जिन्दगी मानो
कराहते हुए छटपटा रही है
शायद दर्द ही सच्चाई है
पता नहीं यह असहनीय पीड़ा
कहां से आई है शहर में
मेरे बारे में
- Dharmendra Gaur
- Nagaur, Rajasthan, India
- नागौर जिले के छोटे से गांव भूण्डेल से अकेले ही चल पड़ा मंजिल की ओर। सफर में भले ही कोई हमसफर नहीं रहा लेकिन समय-समय पर पत्रकारिता जगत में बड़े-बुजुर्गों,जानकारों व शुभचिंतकों की दुआ व मार्गदर्शन मिलता रहा। उनके मार्गदर्शन में चलते हुए तंग,संकरी गलियों व उबड़-खाबड़ रास्तों में आने वाली हर बाधा को पार कर पहुंच गया गार्डन सिटी बेंगलूरु। पत्रकारिता में बीजेएमसी करने के बाद वहां से प्रकाशित एक हिन्दी दैनिक के साथ जुड़कर पत्रकारिता का क-क-ह-रा सीखा और वहां से पहुंच गए राजस्थान की सिरमौर राजस्थान पत्रिका में। वहां लगभग दो साल तक काम करने के बाद पत्रिका हुबली में साढ़े चार साल उप सम्पादक के रूप में जिम्मेदारी का निर्वहन करने के बाद अब नागौर में ....
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