दिल का दर्द जब नयनों से नीर बनकर छलकता है
कंठ रुंध जाता है, मूक हो जाते हैं अधर
जिह्वा निष्क्रिय और मस्तिष्क हो जाता है निश्चेष्ट
ऐसे में होता है ह्दय विदारक कविता का सृजन।।
ह्दय की प्रसन्नता चेहरे पर मुस्कान बन खिलती है
अधर हो जाते हैं विलक और गा उठ उठते हैं कंठ
मस्तिष्क मस्त हो जाता है,नाचे मन मयूर
ऐसे में होता है खिलती मुस्काती कविता का सृजन।।
मेरे बारे में
- Dharmendra Gaur
- Nagaur, Rajasthan, India
- नागौर जिले के छोटे से गांव भूण्डेल से अकेले ही चल पड़ा मंजिल की ओर। सफर में भले ही कोई हमसफर नहीं रहा लेकिन समय-समय पर पत्रकारिता जगत में बड़े-बुजुर्गों,जानकारों व शुभचिंतकों की दुआ व मार्गदर्शन मिलता रहा। उनके मार्गदर्शन में चलते हुए तंग,संकरी गलियों व उबड़-खाबड़ रास्तों में आने वाली हर बाधा को पार कर पहुंच गया गार्डन सिटी बेंगलूरु। पत्रकारिता में बीजेएमसी करने के बाद वहां से प्रकाशित एक हिन्दी दैनिक के साथ जुड़कर पत्रकारिता का क-क-ह-रा सीखा और वहां से पहुंच गए राजस्थान की सिरमौर राजस्थान पत्रिका में। वहां लगभग दो साल तक काम करने के बाद पत्रिका हुबली में साढ़े चार साल उप सम्पादक के रूप में जिम्मेदारी का निर्वहन करने के बाद अब नागौर में ....
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें