भ्रमित व दिशाहीन था मैं
तूने ही तो दिया जीने का मकसद
आई तू हवा के झोंके सी
पर उड़ चली तितली बनकर
क्या यही है तेरा प्यार।।
अकस्मात आया एक बुलबुला
बदल गई जीवन की दिशा
रात हुई तो दिन की आस
भौर में दे दर्शन करती उपकार
क्या यही है तेरा प्यार।।
वो पल अविस्मरणीय मेरे लिए
जो साथ हंस,खेल बिताए हमने
फौलाद सी दृढ़ थी तू हर समय
अंकित है दिल पर एक यादगार
क्या यही है तेरा प्यार।।
हंसाया,रुलाया,अपना बनाया
दी हौसलों की ऊंची उड़ान
पर बीच भंवर में छोड़ चली
जब थी मुझे तेरी दरकार
क्या यही है तेरा प्यार।।
साथ चली थी ना रुकने के लिए
पर क्यों डगमगाए पग बीच राह में
क्या भरोसा न था तुझे मुझ पर
या फिर दूर होना गुजरा दुश्वार
क्या यही है तेरा प्यार।।
चाहत मन में कुछ कर गुजरने की
पर अधूरी चाहत लिए चलते रहे
उस चाहत के लिए चाहत से
हम कुछ कर न सके जीवन भर
क्या यही है तेरा प्यार।।
मुझे खुद नहीं मालुम कि
मैं क्या चाहता था तुझसे
पर भूल यह कि अपना माना तुझे
भूलना चाहू पर भूल पाऊंगा ना भूलकर
क्या यही है तेरा प्यार।।
मेरे बारे में
- Dharmendra Gaur
- Nagaur, Rajasthan, India
- नागौर जिले के छोटे से गांव भूण्डेल से अकेले ही चल पड़ा मंजिल की ओर। सफर में भले ही कोई हमसफर नहीं रहा लेकिन समय-समय पर पत्रकारिता जगत में बड़े-बुजुर्गों,जानकारों व शुभचिंतकों की दुआ व मार्गदर्शन मिलता रहा। उनके मार्गदर्शन में चलते हुए तंग,संकरी गलियों व उबड़-खाबड़ रास्तों में आने वाली हर बाधा को पार कर पहुंच गया गार्डन सिटी बेंगलूरु। पत्रकारिता में बीजेएमसी करने के बाद वहां से प्रकाशित एक हिन्दी दैनिक के साथ जुड़कर पत्रकारिता का क-क-ह-रा सीखा और वहां से पहुंच गए राजस्थान की सिरमौर राजस्थान पत्रिका में। वहां लगभग दो साल तक काम करने के बाद पत्रिका हुबली में साढ़े चार साल उप सम्पादक के रूप में जिम्मेदारी का निर्वहन करने के बाद अब नागौर में ....
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