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Nagaur, Rajasthan, India
नागौर जिले के छोटे से गांव भूण्डेल से अकेले ही चल पड़ा मंजिल की ओर। सफर में भले ही कोई हमसफर नहीं रहा लेकिन समय-समय पर पत्रकारिता जगत में बड़े-बुजुर्गों,जानकारों व शुभचिंतकों की दुआ व मार्गदर्शन मिलता रहा। उनके मार्गदर्शन में चलते हुए तंग,संकरी गलियों व उबड़-खाबड़ रास्तों में आने वाली हर बाधा को पार कर पहुंच गया गार्डन सिटी बेंगलूरु। पत्रकारिता में बीजेएमसी करने के बाद वहां से प्रकाशित एक हिन्दी दैनिक के साथ जुड़कर पत्रकारिता का क-क-ह-रा सीखा और वहां से पहुंच गए राजस्थान की सिरमौर राजस्थान पत्रिका में। वहां लगभग दो साल तक काम करने के बाद पत्रिका हुबली में साढ़े चार साल उप सम्पादक के रूप में जिम्मेदारी का निर्वहन करने के बाद अब नागौर में ....

जनवरी 15, 2011

एक रेल गाड़ी, पांच-पांच इंजन!

-घाट सेक्शन में आसान नहीं सफर
धर्मेन्द्र गौड़ @ हुबली

एक रेलगाड़ी और पांच-पांच इंजन...जी हां, राज्य के केसलरॉक से कुलेम स्टेशन के बीच यह नजारा आम है। २६ किलोमीटर इस रास्ते के दौरान गाड़ी जब घने जंगल से गुजरती है तो यात्री रोमांचित हुए बिना नहीं रहते। हरी-भरी पहाडिय़ों वाले इस मार्ग का नजारा जितना नयनाभिराम है, रेलवे के लिए यहां गाडिय़ों का संचालन उतना ही दुरूह है।
यहां हर डेढ़ किलोमीटर पर सुरंग है। गाड़ी १६ सुरंगों से होकर अत्यंत घुमावदार रास्ते से रफ्ता-रफ्ता गुजरती है तो यात्रियों की सांसे थम सी जाती है। बारिश में यहां भूस्खलन होता रहता है। इस मार्ग के तीन स्टेशनों कुलेम, करांजोल व सोनाउली में आज भी बिजली नहीं है और सड़क मार्ग से कटे हुए हैं। यहां गाड़ी चलाने की अधिकतम गति सीमा 40 किलोमीटर प्रतिघंटा है लेकिन एहतियातन इसे तीस किलोमीटर तक ही सीमित कर रखा जाता है। प्रकृति की गोद में बसे केसलरॉक से गोवा के वास्को स्टेशन तक मालगाड़ी के लिए पांच और सवारी गाड़ी में चार इंजन लगाने पड़ते हैं। रेलवे इसे घाट सेक्शन (ब्रगांजा घाट) कहता है। इससे 13 पेसेंजर व एक दर्जन मालगाडिय़ां रोज गुजरती हैं।

बेहतर तालमेल जरूरी
इस खतरनाक उतार-चढ़ाव व घुमावदार घाटी में पांच लोको पायलट के बीच सामंजस्य की कड़ी परीक्षा होती है। वे गाड़ी की गति को लेकर वॉकी-टॉकी के जरिए हर पल संपर्क में रहते हैं। साधारण रेलवे टे्रक पर चलने वाली एक गाड़ी के लिए ४ हजार अश्वशक्ति के इंजन की जरूरत रहती है जबकि इस सेक्शन में २० हजार अश्व शक्ति की जरूरत पड़ती है। रेलवे ने ढ़लान में गाड़ी पर नियंत्रण के लिए ३० किलोमीटर प्रतिघंटे की गति तय की है। यदि गाड़ी इससे तेज चलती है तो ऑटोमेटिक इमरजेंसी ब्रेक गाड़ी को वहीं जाम कर देते हैं। वास्को से केसल रॉक आते समय मालगाड़ी में आगे दो व पीछे तीन तथा सवारी गाड़ी में दो लीड व दो बैंकर इंजन लगते हैं।
तीव्र ढलान पर कठिन है नियंत्रण
केसल रॉक स्टेशन समुद्र तल से ५७९ मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। वास्को की ओर जाते समय घाट एरिया में ट्रेन 37 मीटर चलती है तो एक मीटर ढलान पर उतर जाती है। इसी प्रकार वास्को से केसल रॉक की ओर चढ़ाई करते समय गाड़ी जब ३७ मीटर चढ़ती है तो पटरी की ऊंचाई १ मीटर बढ़ जाती है। घाट सेक्शन में घुसने से पहले केसलरोक और वास्को में गाड़ी के पावर ब्रेक की जांच की जाती है। वह शत-प्रतिशत सही होने पर ही आगे ले जाने की अनुमति दी जाती है। इस जांच में माल गाडिय़ों को १ व सवारी गाड़ी को १५ मिनट अतिरिक्त समय लगता है।

घाट सेक्शन में जुड़ते हैं इंजन
हुबली जंक्शन से वास्को की ओर जाने वाली गाडिय़ां वाया लोंडा होकर चलती है। इन सभी गाडिय़ों में एक या मालगाड़ी में दो इंजन लगते हैं। इन गाडिय़ों को इस छोर से केसल रॉक पर रोक दिया जाता है और वहां पर मालगाडिय़ों में पांच व सवारी गाडिय़ों में चार इंजन लगाए जाते हैं। यहां से कुलेम तक पांच इंजन रहते हैं। कुलेम से वास्को तक फिर एक या दो इंजन जोड़ दिए जाते हैं। वापसी में वास्को से कुलेम तक एक इंजन व कुलेम से चार या पांच इंजन जोड़कर गाडिय़ों को केसल रॉक तक लाया जाता है। जहां फिर इनमें एक या दो इंजन ही गाड़ी को आगे लेकर जाते हैं।
सौर ऊर्जा से रोशन घाट
वास्को से ५८ किलोमीटर पर स्थित कुलेम से केसल रॉक के बीच दूधसागर, सोनालियम व कारजोल तीन ऐसे स्टेशन हैं जो घाट सेक्शन के २६ किलोमीटर के दायरे में आते हैं। ये सभी स्टेशन सड़क सम्पर्क से जुड़े हुए नहीं है साथ ही यहां विद्युत आपूर्ति नहीं होने के चलते पूरा कार्य जनरेटर पर निर्भर है। रेलवे ने जनरेटर पर होने वाले खर्च को कम करने की कवायद के तहत यहां सौर उर्जा का उपयोग कर रहा है। इन तीनों स्टेशनों व वहां तैनात कर्मचारियों की लाइट की सारी आवश्यकताएं जनरेटर या फिर सौर उर्जा से ही पूरी होती है।

- राजस्थान पत्रिका हुबली १५ जनवरी में प्रकाशित

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