मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
Nagaur, Rajasthan, India
नागौर जिले के छोटे से गांव भूण्डेल से अकेले ही चल पड़ा मंजिल की ओर। सफर में भले ही कोई हमसफर नहीं रहा लेकिन समय-समय पर पत्रकारिता जगत में बड़े-बुजुर्गों,जानकारों व शुभचिंतकों की दुआ व मार्गदर्शन मिलता रहा। उनके मार्गदर्शन में चलते हुए तंग,संकरी गलियों व उबड़-खाबड़ रास्तों में आने वाली हर बाधा को पार कर पहुंच गया गार्डन सिटी बेंगलूरु। पत्रकारिता में बीजेएमसी करने के बाद वहां से प्रकाशित एक हिन्दी दैनिक के साथ जुड़कर पत्रकारिता का क-क-ह-रा सीखा और वहां से पहुंच गए राजस्थान की सिरमौर राजस्थान पत्रिका में। वहां लगभग दो साल तक काम करने के बाद पत्रिका हुबली में साढ़े चार साल उप सम्पादक के रूप में जिम्मेदारी का निर्वहन करने के बाद अब नागौर में ....

अप्रैल 22, 2010

खंडहर में तब्दील होती ऐतिहासिक धरोहर

उपेक्षा का शिकार १२वीं सदी का चंद्रमौलेश्वर मंदिर
हुबली, 22 अप्रेल।
भारत एक विशाल महाद्वीप होने के साथ विभिन्न संस्कृतियों, सभ्यताओं, परम्पराओं, कला, ऐतिहासिक स्थलों के महाकुम्भ के समान है। भारत में कई संस्कृतियां, कई सभ्यताएं, कई राजा, महाराजों ने अपनी शौर्य गाथा विश्व को दिखाई है। भारत में ऐसे कई मंदिर व ऐतिहासिक धरोहर हैं जिन्हें इन्हें देखने के लिए विदेशों से पर्यटक आते हैं। विदेशी हमारी कला, समृध्द संस्कृति से काफी प्रभावित होते हैं। परन्तु स्थानीय निवासियों की अनदेखी के चलते जहां कई एतिहासिक धरोहर, मंदिर, पुरातत्व इमारतें जर्जरित हो रही हैं वहीं कुछका नामों-निशां तक नहीं है। इसी प्रकार की अनदेखी का शिकार हुआ है स्थानीय उणकल गांव में स्थित चंद्रमौलेश्वर मंदिर। खूबसूरत कलाकृतियों, विभिन्न मुद्रा की कलात्मक मूर्तियों को पत्थर में कंदवाकर निर्मित सुंदर मंदिर आज विरान पड़ा है।

विशेषताओं से भरपूर है मंदिर: प्राचीन शिलालेखों के अनुसार उणकल का नाम उणकल्लु दर्ज है जो तीस गांवों का केंद्र था। यहां स्थित इस एतिहासिक मंदिर में यहां से अब तक दो शिलालेख मिले हैं। एक शिलालेख के अनुसार उगुरेश्वर के भगवान केशव को वामदेव पंडित ने प्रतिष्ठापित किया था जबकि एक और शिलालेख धुंधला है इसमें यादव मल्लिदेव का जिक्र है। इस गुंबज रहित मंदिर का निमार्ण उस दौर के महान शिल्पी जकनाचार्य ने एक ही रात में किया बताते हैं। इस गांव में चालुक्य व चोल राजाओं के बीच घमासान युध्द का जिक्र एक और शिलालेख में दर्ज है। कल्याण के चालुक्य के शासन में निर्मित यह मंदिर उत्कृष्ट कलाकृति का नमूना है। इस मंदिर का क्षेत्र विशेषताओं से भरा है। गर्भ गृह, प्रदक्षिण पथ अंतराल तथा चारों दिशाओं से मुख मंडप वाले इस मंदिर के मूल गर्भ गृह में चतुर्मुख शिवलिंग था अब इसकी जगह पर एक दूसरा शिवलिंग प्रतिष्ठापित किया गया है। चतुर्मुख शिवलिंग को पश्चिम मंडल में प्रतिष्ठापित किया गया है। इस गर्भगृह की एक और विशेषता है कि इसे चारों दिशाओं से प्रवेश द्वार है। हर द्वार की दहलिज में आकर्षक पंच प्रकार की आकृतियां खुदवाई गई हैं। बुनियाद में क्लशधारी रति, मन्मथ, द्वार पालकों को खुदवाया गया है।

आकर्षण का केन्द्र है प्रवेश द्वार: गर्भगृह के चारों ओर प्रदक्षिणापथ है। यहां भी चारों दिशाओं में प्रवेश द्वार है। इनका द्वार बंद आकर्षक है। इसके पूरक चारों दिशाओं में दो मुख कमरों का मडप हैं। इनमें से पूर्व द्वार की दहलीज को छोड़कर बाकी तीन द्वार सादे हैं। इसमें त्रिशाखा पट्टी मात्र है। दोनों ओर कमल, लताओं से अलंकृत जाली है। पूर्वाभिमुख इस मंदिर का पूर्व के मुख्य द्वार त्रिशाखालंकार से भरा है। उपर आकर्षक मकर माला है। इसकी जाली नृतकी, वाद्यकलाकारों की खुदवाई हुई वृत्ताकार लताओं से भरी हैं। यह दहलीज ही एक श्रेष्ठ कलाकृति से भरा है। मंदिर के गर्भगृह, मुख मंडप की छत में कमल खुदवाया गया है। इस मंदिर के पूर्व द्वार की दोनों ओर देव कोष्ठ हैं। मंदिर के आगे सभा मंडप है। मंदिर के बाहरी हिस्से में लताओं, घोड़े, हाथी की कतार की पट्टियां हैं। मंदिर के पिल्लर विभिन्न शिखरों से अलंकारिक खम्भे हैं। बीच में देवी देवताओं की मूर्तियां खुदवाए गए हैं।
होयस्सल वास्तु शिल्प की झलक: इस मंदिर के शिखर पर नटराज, उग्रनरसिंह, गणपति, सरस्वती, महिषासुर मर्दिनी, आदि देवताओं को खुदवाया गया है। मंदिर के चारों ओर विभिन्न देवताओं के नयन मनोहारी चित्र उत्कीर्ण किए गए हैं। 12वीं सदी की इस मंदिर पर होयस्सल वास्तु शिल्प का असर नजर आता है। यह मंदिर केंद्रीय पुरातत्व विभाग के संरक्षण में आता है। इस मंदिर की एक और विशेषता है कि इस मंदिर की दीवार पर आकर्षक बलमूरी गणपति खुदवाया गया है। जिसका चेहरा व सूंड दाईं ओर मुड़ी हुई है। इस मंदिर में पूर्व से पश्चिम की ओर 6 तथा उत्तर से दक्षिण की ओर 6 दरवाजे हैं। कुल 12 दरवाजे हैं। आठ दरवाजे अंदर हैं। मंदिर के मुख्य द्वार पर गज लक्ष्मी की मूर्ति है। युगादि के दिन मंदिर के मुख्य द्वार के ऊपर बने तीन कमानों से गर्भगृह में रखे शिव लिंग पर सूर्य की किरणें पड़ती हैं।
उपेक्षा का शिकार विरासत: इसकी देखरेख कर रहे पुरातत्व विभाग के कर्मचारी सुरेश निलगुंद ने पत्रिका से बातचीत में कहा कि इस मंदिर का रख रखाव केंद्रीय पुरातत्व विभाग करता है। 12 वीं सदी के इस मंदिर की अधिकांश मूर्तियों को क्षति पहुंचाई गई है। मंदिर के भीतर तथा बाहर एक ही शिला में खुदवाए गए नंदी के विग्रहों को क्षति पहुंचाई गई है। कान आदि निकाले गए हैं। साथ ही गर्भगृह में स्थित मूल शिवलिंग को भी क्षति पहुंचाई गई है। इसी कारण इसे बगल के गृह में रखकर इसकी जगह एक अन्य शिवलिंग प्रतिष्ठापित किया गया है। मंदिर में पर्यटक बहुत कम आते हैं।
पर्यटकों का टोटा: उणकल गांव के भीतर होने से मंदिर के बारे में अधिकांश लोगों को पता तक नहीं है। मंदिर के आस पास मकान बने हुए हैं जिसके चलते मंदिर मकानों के बीच छिप गया है। जिलाधिकारी तथा जिला प्रभारी मंत्री जगदीश शेट्टर ने इस मंदिर के विकास के लिए इसे पर्यटन स्थल के रुप में विकसित करने की योजना भी बनाई थी। और मंदिर के आस पास के लोगों को स्थानांतरित करने के प्रयास भी किए । परन्तु कुछ लोग तो मान गए लेकिन अधिकांश लोगों ने यहां से स्थानांतरित करने का विरोध किया। स्थानीय निवासियों, व राजनेताओं की प्रबल इच्छा शक्ति की कमी व राजनीति के कारण मंदिर आज जर्जर अवस्था में हैं। इस ऐतिहासिक धरोहर की रक्षा के साथ इसके प्रचार की भी जरूरत है। हूगार घराने के तीन परिवार इस मंदिर में प्रति दिन पूजा करते हैं। हर वर्ष एक-एक परिवार क्रमश: पूजा करता है।

कोई टिप्पणी नहीं: