वर्ष भर चले खुशियों का सिलसिला
धर्मेन्द्र गौड़
कुछ खट्टी,कुछ मीठी यादों के साथ कई उतार-चढ़ावों का साक्षी रहा यह २०१० भी बीत गया और अब नया साल नई उम्मीदों,नई सौगातों व ढ़ेरी सारी खुशियां अपनी झोली में समेटे फिर आ गया है। साल की विदाई के साथ ही प्रति वर्ष नए साल की शुरुआत होती है और बधाइयों का दौर शुरू हो जाता है। बीती ताहि बीसार दे आगे की सुध लेय...वाली तर्ज पर लोग पुरानी बातों को भूलाकर या अतीत में की गई गलतियों को सुधारने के संकल्प के साथ करते है नए साल की शुरुआत। नए साल का स्वागत महज एक आयोजन ही नहीं बनना चाहिए। यह समय वर्ष भर में किए गए कार्यों के आत्मावलोकन का समय है। ऐसा माना जाता है कि किसी भी कार्य की शुरुआत अगर अच्छी हो तो फिर सब ठीक होता है। इसी मनोवृत्ति को दृष्टिगत रखकर लोग कार्य करते हैं। यह सिलसिला महज एक दिन यानी एक जनवरी को ही बल्कि हर सुबह होना चाहिए। वैसे तो भारतीय संस्कृति में ऐसा कोई दिन नहीं जिस दिन कोई पर्व, उपवास या अन्य कोई महत्वपूर्ण प्रसंग नहीं हो। कैलेंडर के ३६५ दिनों में हर सुबह की शुरुआत कुछ इस तरह से की जाए कि दिन चैन व शुकून भरा हो। अगर व्यक्ति प्रतिदिन शुभाशुभ का चिंतन कर शुभ के लिए प्रयास को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बना ले तो उसके रोजमर्रा के जीवन में आने वाली अनेक परेशानियां व समस्याएं स्वत: ही खत्म हो जाएगी। साल भर में हमनें क्या खोया और क्या पाया इसके हिसाब का वक्त है नया साल।
राष्ट्र हित में हो चिंतन
हर नई सुबह की पहली किरण हर पल कुछ खास संदेश देती है। वह सुबह मासूम तो दोपहर में तेज व अपराह्न में फिर कमजोर होते होते वह शाम को फिर शीतल हो जाती है। कहते हैं कि रात जितनी घनी व अंधियारी होती है भोर का उजाला उतना ही आनंदायी होता है। अपनी अंतरात्मा से एक ही सवाल करें कि साल भर में उसने राष्ट्र हित में कितने कार्य किए, भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया या उसका डटकर मुकाबला किया, समाज से जुड़े कार्यों में आपका कितना योगदान रहा,समाज में व्याप्त बुराइयों में भागीदार बने या उनका प्रतिकार किया। साल के पहले दिन महज संदेश भेजकर नया साल मुबारक कह देने भर से ही व्यक्ति की जिम्मेदारी खत्म नहीं हो जाती। यह सिलसिला उसे वर्ष भर जारी रखना चाहिए। वर्ष भर शुभकामना संदेश के बदले अपने आसपास,अपने परिवार,समाज या मित्र मंडली के सम्पर्क में रहते हुए उनके सुख-दुख में भागीदार बनकर उनकी समस्याओं का हल निकालने में साझेदार बनें।
भ्रष्टाचार का विरोध जरुरी
आज भौतिकवाद की अंधी दौड़,पाश्चात्य संस्कृति के प्रति बढ़ता आकर्षण,समाज का बदलता स्वरूप, राजनीति की बदलती तस्वीर सबके सामने है। देश भर में व्यापक स्तर पर फैले भ्रष्टाचार का मुकाबला एक व्यक्ति के बस की बात नहीं है और हर क्षेत्र में बढ़ती राजनीतिक दखलंदाजी के कारण व्यक्ति चाह कर भी कुछ नहीं कर सकता। लेकिन व्यक्ति नए साल में इतना संकल्प तो कर ही सकता है कि वह किसी भी सूरत में भ्रष्टाचार को बढ़ावा नहीं देगा। कोई काम एक दिन देरी से होगा तो कोई बात नहीं लेकिन सरकारी दफ्तर में किसी बाबु को काम के बदले रिश्वत नहीं देंगे। अगर यात्रा करनी है तो समय रहते आरक्षण टिकट बनवाएंगे। मजबूरी में आपात स्थिति में यात्रा करनी पड़े तो प्रतीक्षा सूची या तत्काल टिकट लेकर जाएंगे लेकिन टिकट से दुगुनी राशि एजेंट को देकर टिकट नहीं बनवाएंगे। यह तो उदाहरण मात्र है। व्यक्ति की देश के सकल घरेलू उत्पाद या यों कहें कि देश के विकास में आम आदमी का अहम योगदान है। व्यक्ति आय कर,रोड टेक्स,प्रोपर्टी टेक्स देता है और अनेक प्रकार से वह राष्ट्र विकास में भागीदार बनता है।
समाज हित सर्वाेपरि
आज समाज में दो तरह के लोग है एक वे जो धारा के साथ चलते हैं और एक वे जो धारा के प्रतिकूल। धारा के साथ चलना सरल है लेकिन धारा के प्रतिकृल चलना न केवल कठिन है बल्कि उसमें जोखिम भी कमतर नहीं है। लेकिन धारा के विपरीत चलकर काम करने के बाद जो आत्म संतुष्टि होती है उसका अलग ही आनंद है। हो सकता है आपके विरोध करने से कुछ जगह आप चर्चा का विषय बन सकते हैं या फिर लोग आपको समाज सुधारक की संज्ञा भी दे सकते हैं लेकिन कानूनी दायरे में रहते हुए सबको अपना कार्य करना चाहिए। आज हर कोई कहता है कि मैं अकेला क्या कर सकता हूं। सभी इसी तरह सोच रहे हैं तो फिर समाज से भ्रष्टाचार बढ़ेगा ही कम नहीं होगा। आज देश में भ्रष्टाचार सबसे बड़ी समस्या है। पैसे वाले के लिए रिश्वत देकर काम करवाना कोई बड़ी बात नहीं है लेकिन उस आम आदमी का क्या होगा जो महज दो रोटी का जुगाड़ ही मुश्किल से कर पाता है या फिर इतना कमाता है कि उसका गुजारा आराम से चल जाता है। ऐसे में किसी काम के लिए उसके पास रिश्वत कहां से आएगी। आरक्षित टिकट के लिए एजेंट को देने के लिए पांच सौ रुपए वह कहां से लाएगा।
संकल्प को पूरा करें
नया साल पिछली बार भी आया था इस बार भी आया है। हर साल की तरह इस बार भी फिर से शामिल हो गए जिंदगी की दौड़ में। जीने की हौड़ में फिर से आगे बढ़ रहे हैं। नए साल पर संकल्प लें कि तमाम व्यस्तताओं के बावजूद वे बच्चों की दिनचर्या पर ध्यान देंगे। समय निकालकर जितना हो सके उतना परोपकार के कार्य में भागीदार बनेंगे। समाज को आगे बढ़ाने के लिए सहयोग करेंगे। नया साल आता है और चला जाता है। हर नए साल का हम उत्साह से स्वागत करते हैं तथा नववर्ष की पूर्व संध्या पर आगामी वर्ष को बेहतर बनाने के लिए संकल्प लेते हैं। हमारे संकल्पों के पूरा न होने का एक कारण तो यही है कि हम अपने संकल्प के प्रति आश्वस्त ही नहीं होते अर्थात हमें विश्वास ही नहीं होता कि हमारा संकल्प पूरा हो जाएगा। यदि आप चाहते हैं कि आपके संकल्प पूरे हों तो सबसे पहले यही संकल्प लीजिए कि मेरे सभी सकारात्मक संकल्प या विचार सदैव पूर्ण होते हैं। यहां एक बात और भी महत्वपूर्ण है कि हम जाने-अनजाने हर क्षण संकल्प लेते ही रहते हैं। हमारे मन में उठने वाला हर विचार एक संकल्प ही तो है। यदि हम अपने अंदर ये विश्वास पैदा कर लें कि हमारे सभी सकारात्मक विचार या संकल्प पूर्णता को प्राप्त होते हैं तो जीवन में एक क्रांति आ जाए। हमारे असंख्य उपयोगी विचार पूर्ण होकर हमारे जीवन और पूरे समाज को बदल डालें। अत: सबसे पहले अपने संकल्प की पूर्णता के प्रति अपने मन में पूर्ण विश्वास पैदा कीजिए।
धर्मेन्द्र गौड़
कुछ खट्टी,कुछ मीठी यादों के साथ कई उतार-चढ़ावों का साक्षी रहा यह २०१० भी बीत गया और अब नया साल नई उम्मीदों,नई सौगातों व ढ़ेरी सारी खुशियां अपनी झोली में समेटे फिर आ गया है। साल की विदाई के साथ ही प्रति वर्ष नए साल की शुरुआत होती है और बधाइयों का दौर शुरू हो जाता है। बीती ताहि बीसार दे आगे की सुध लेय...वाली तर्ज पर लोग पुरानी बातों को भूलाकर या अतीत में की गई गलतियों को सुधारने के संकल्प के साथ करते है नए साल की शुरुआत। नए साल का स्वागत महज एक आयोजन ही नहीं बनना चाहिए। यह समय वर्ष भर में किए गए कार्यों के आत्मावलोकन का समय है। ऐसा माना जाता है कि किसी भी कार्य की शुरुआत अगर अच्छी हो तो फिर सब ठीक होता है। इसी मनोवृत्ति को दृष्टिगत रखकर लोग कार्य करते हैं। यह सिलसिला महज एक दिन यानी एक जनवरी को ही बल्कि हर सुबह होना चाहिए। वैसे तो भारतीय संस्कृति में ऐसा कोई दिन नहीं जिस दिन कोई पर्व, उपवास या अन्य कोई महत्वपूर्ण प्रसंग नहीं हो। कैलेंडर के ३६५ दिनों में हर सुबह की शुरुआत कुछ इस तरह से की जाए कि दिन चैन व शुकून भरा हो। अगर व्यक्ति प्रतिदिन शुभाशुभ का चिंतन कर शुभ के लिए प्रयास को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बना ले तो उसके रोजमर्रा के जीवन में आने वाली अनेक परेशानियां व समस्याएं स्वत: ही खत्म हो जाएगी। साल भर में हमनें क्या खोया और क्या पाया इसके हिसाब का वक्त है नया साल।
राष्ट्र हित में हो चिंतन
हर नई सुबह की पहली किरण हर पल कुछ खास संदेश देती है। वह सुबह मासूम तो दोपहर में तेज व अपराह्न में फिर कमजोर होते होते वह शाम को फिर शीतल हो जाती है। कहते हैं कि रात जितनी घनी व अंधियारी होती है भोर का उजाला उतना ही आनंदायी होता है। अपनी अंतरात्मा से एक ही सवाल करें कि साल भर में उसने राष्ट्र हित में कितने कार्य किए, भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया या उसका डटकर मुकाबला किया, समाज से जुड़े कार्यों में आपका कितना योगदान रहा,समाज में व्याप्त बुराइयों में भागीदार बने या उनका प्रतिकार किया। साल के पहले दिन महज संदेश भेजकर नया साल मुबारक कह देने भर से ही व्यक्ति की जिम्मेदारी खत्म नहीं हो जाती। यह सिलसिला उसे वर्ष भर जारी रखना चाहिए। वर्ष भर शुभकामना संदेश के बदले अपने आसपास,अपने परिवार,समाज या मित्र मंडली के सम्पर्क में रहते हुए उनके सुख-दुख में भागीदार बनकर उनकी समस्याओं का हल निकालने में साझेदार बनें।
भ्रष्टाचार का विरोध जरुरी
आज भौतिकवाद की अंधी दौड़,पाश्चात्य संस्कृति के प्रति बढ़ता आकर्षण,समाज का बदलता स्वरूप, राजनीति की बदलती तस्वीर सबके सामने है। देश भर में व्यापक स्तर पर फैले भ्रष्टाचार का मुकाबला एक व्यक्ति के बस की बात नहीं है और हर क्षेत्र में बढ़ती राजनीतिक दखलंदाजी के कारण व्यक्ति चाह कर भी कुछ नहीं कर सकता। लेकिन व्यक्ति नए साल में इतना संकल्प तो कर ही सकता है कि वह किसी भी सूरत में भ्रष्टाचार को बढ़ावा नहीं देगा। कोई काम एक दिन देरी से होगा तो कोई बात नहीं लेकिन सरकारी दफ्तर में किसी बाबु को काम के बदले रिश्वत नहीं देंगे। अगर यात्रा करनी है तो समय रहते आरक्षण टिकट बनवाएंगे। मजबूरी में आपात स्थिति में यात्रा करनी पड़े तो प्रतीक्षा सूची या तत्काल टिकट लेकर जाएंगे लेकिन टिकट से दुगुनी राशि एजेंट को देकर टिकट नहीं बनवाएंगे। यह तो उदाहरण मात्र है। व्यक्ति की देश के सकल घरेलू उत्पाद या यों कहें कि देश के विकास में आम आदमी का अहम योगदान है। व्यक्ति आय कर,रोड टेक्स,प्रोपर्टी टेक्स देता है और अनेक प्रकार से वह राष्ट्र विकास में भागीदार बनता है।
समाज हित सर्वाेपरि
आज समाज में दो तरह के लोग है एक वे जो धारा के साथ चलते हैं और एक वे जो धारा के प्रतिकूल। धारा के साथ चलना सरल है लेकिन धारा के प्रतिकृल चलना न केवल कठिन है बल्कि उसमें जोखिम भी कमतर नहीं है। लेकिन धारा के विपरीत चलकर काम करने के बाद जो आत्म संतुष्टि होती है उसका अलग ही आनंद है। हो सकता है आपके विरोध करने से कुछ जगह आप चर्चा का विषय बन सकते हैं या फिर लोग आपको समाज सुधारक की संज्ञा भी दे सकते हैं लेकिन कानूनी दायरे में रहते हुए सबको अपना कार्य करना चाहिए। आज हर कोई कहता है कि मैं अकेला क्या कर सकता हूं। सभी इसी तरह सोच रहे हैं तो फिर समाज से भ्रष्टाचार बढ़ेगा ही कम नहीं होगा। आज देश में भ्रष्टाचार सबसे बड़ी समस्या है। पैसे वाले के लिए रिश्वत देकर काम करवाना कोई बड़ी बात नहीं है लेकिन उस आम आदमी का क्या होगा जो महज दो रोटी का जुगाड़ ही मुश्किल से कर पाता है या फिर इतना कमाता है कि उसका गुजारा आराम से चल जाता है। ऐसे में किसी काम के लिए उसके पास रिश्वत कहां से आएगी। आरक्षित टिकट के लिए एजेंट को देने के लिए पांच सौ रुपए वह कहां से लाएगा।
संकल्प को पूरा करें
नया साल पिछली बार भी आया था इस बार भी आया है। हर साल की तरह इस बार भी फिर से शामिल हो गए जिंदगी की दौड़ में। जीने की हौड़ में फिर से आगे बढ़ रहे हैं। नए साल पर संकल्प लें कि तमाम व्यस्तताओं के बावजूद वे बच्चों की दिनचर्या पर ध्यान देंगे। समय निकालकर जितना हो सके उतना परोपकार के कार्य में भागीदार बनेंगे। समाज को आगे बढ़ाने के लिए सहयोग करेंगे। नया साल आता है और चला जाता है। हर नए साल का हम उत्साह से स्वागत करते हैं तथा नववर्ष की पूर्व संध्या पर आगामी वर्ष को बेहतर बनाने के लिए संकल्प लेते हैं। हमारे संकल्पों के पूरा न होने का एक कारण तो यही है कि हम अपने संकल्प के प्रति आश्वस्त ही नहीं होते अर्थात हमें विश्वास ही नहीं होता कि हमारा संकल्प पूरा हो जाएगा। यदि आप चाहते हैं कि आपके संकल्प पूरे हों तो सबसे पहले यही संकल्प लीजिए कि मेरे सभी सकारात्मक संकल्प या विचार सदैव पूर्ण होते हैं। यहां एक बात और भी महत्वपूर्ण है कि हम जाने-अनजाने हर क्षण संकल्प लेते ही रहते हैं। हमारे मन में उठने वाला हर विचार एक संकल्प ही तो है। यदि हम अपने अंदर ये विश्वास पैदा कर लें कि हमारे सभी सकारात्मक विचार या संकल्प पूर्णता को प्राप्त होते हैं तो जीवन में एक क्रांति आ जाए। हमारे असंख्य उपयोगी विचार पूर्ण होकर हमारे जीवन और पूरे समाज को बदल डालें। अत: सबसे पहले अपने संकल्प की पूर्णता के प्रति अपने मन में पूर्ण विश्वास पैदा कीजिए।